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________________ लिए, सम्यग् दर्शन की प्राप्ति अत्यन्त आवश्यक है, अनिवार्य है । सम्यग् दर्शन मोक्ष प्राप्ति की प्राथमिक आवश्यकता है । अतः सम्यग् दर्शन के लिए पुरुषार्थ करना चाहिये। . एसो पंच नमुक्कारोश्री नमस्कार महामंत्र के छठे पद पर “एसो पंच नमुक्कारो” पाठ दिया गया है । इसमें “एसो पंच नमुक्कारों' - शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण एवं कीमती हैं । नमस्कार महामन्त्र के इस छठे पद की तुलना नव पद के छठे सम्यग्दर्शन पद के साथ करने पर दोनों में समानता याने सादृश्यता स्पष्ट दिखाई देती है । इससे यह प्रतीत होता है कि “ऐसो पंच नमुक्कारों' के अर्थ में ही सम्यग् दर्शन का सही अर्थ है । एसो+पंच+नमुक्कारों = एसो पंच नमुक्कारो । ऐसो = इन (यही) पंच = ५ (पंच परमेष्टी अर्थात् नवकार मंत्र में उपरोक्त पांच पदों में जो अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय सर्व साधु आदि पंच परमेष्टी हैं, उन्हीं पाँच का "एसो पंच" पद से अर्थग्रहण किया गया हैं । इन पांच को ही नमस्कार है । यही अभिग्रहिक, अनभिग्रहिक आदि मिथ्यात्व निवृत्ति रूपक सच्चा नमस्कार किया गया हैं। इससे स्पष्ट सम्यग् दर्शन रूप सच्ची श्रद्धा का बोध होता हैं । अतः “एसो पंच नमुक्कारो" यह छठा पद नवपद के छठे पद सम्यग्दर्शन का सही अर्थ में द्योतक है। इसमें "पंच" संख्यावाची शब्द से और “ऐसो" अर्थात् इन्हीं पांच-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु के अलावा किसी अन्य को ग्राह्य नहीं किया गया है। अतः छठे पद से इन और ऐसे पांच अरिहंतादि को नमस्कार किया गया है, अर्थात् (१) अरिहंत ऐसे बीतराग भगवान को नमस्कार, (२) सिद्ध, बुद्ध मुक्त ऐसे सिद्ध भगवान को नमस्कार (३) पंचाचार प्रवीण ऐसे आचार्य भगवन्तों को नमस्कार, (४) पाठक एवं वाचकवर्य ज्ञानदाता ऐसे उपाध्यायों को नमस्कार, (५) समस्त लोक में रहे हुए, सिद्धि मार्ग के साधक, विरक्त, वैरागी, त्यागी, तपस्वी साधु-मुनिराजों को नमस्कार किया गया है। इनके अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं । अतः “ऐसो पंच" यह पद एक मर्यादा एवं सीमा: बांधने वाला होता है। जो अरिहंत, सिद्धादि पांच की व्याख्या एवं पद पर आते हैं, उन्हें नमस्कार अवश्य किया गया है, परन्तु इन पांच की व्याख्या में जो नहीं आता है एवं इन पांच के जैसा स्वरूप जिनका नहीं है, उनको नमस्कार नहीं किया गया है। यह प्रमाण दिखाने के लिए अरिहंत आदि पांचों के नियत गुणों की संख्या निम्नानुसार दर्शाई गई है १२२ कर्म की गति त्यारी
SR No.002481
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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