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________________ गया। ट्रक भर जाने पर अकेला ही उस भारी ट्रक को मकान पर ले गया, और वहां खाली करके घर आकर बिस्तर में सो गया । सुबह जब पत्नी उठाने गई तब सारा शरीर पसीने में तर था, एवं भारी गरमी के कारण मानों खौल रहा था । नींद से उठकर जल्दबाजी करता हुआ तैयार हो रहा था । इतने में पत्नी ने पूछा कि आप रात में इतनी देर तक कहां गये थे ? पति ने इसका कुछ भी जवाब न देते हुये कहा “मुझे जल्दी काम पर जाना है, अतः इस समय देरी मत कर, मुझे जाने दे।" इतना कहकर घर से निकल गया और शीघ्र ही काम पर पहुँच गया। सभी मजदूर इकट्ठे हुये थे और यह चर्चा कर रहे थे कि पत्थर का यह ट्रक यहां कौन ले आया है ? सभी इन्कार कर रहे थे कि इतने में चौकीदार ने उस मजदूर का नाम बताते हुये कहा यह मजदूर रात को ले आया था। इस प्रकार थीणद्धि निद्रा में वह मजदूर दुगुनी, चौगुनी शक्ति से काम कर रहा था। वीरविजयजी महाराज दर्शनावरणीय कर्म की पूजा · की ढाल में कहते हैं कि दिन चितित रात्रे करे रे, करणी जे नरनार । बलदेव न बल ते समेरे, नरक गति अवतार ॥ अर्थात् थीणद्धि निद्रा के उदय से ऐसे कार्य जो भी कोई करते है, भले ही वे बलदेव के बल जितनी शक्ति से करते हों, परन्तु वे नरक गति में जाते हैं । इस तरह थीणद्धि निद्रा ।हुत ही खराब होती है । जीव को नरकगामी बनाती है । निद्रा से नुकसान पूर्वधर मुनि दुर्गति में गये । महान विद्वान् पूज्य आचार्यदेव के भानुदत्त नामक मुनि अच्छे शिष्य थे । आचार्य महाराज ने खूब परिश्रम से उन्हें १४ पूर्व (धर्मशास्त्रों) का अभ्यास कराया। इस तरह भानुदत्त मुनि भी १४ पूर्वधारी महान् विद्वान् बने । नीतिकार कहते हैं कि लक्ष्मी और विद्या होने के बाद सम्भालनी बड़ी मुश्किल होती है । भानुदत्त मुनि जो कि पूर्वधर महात्मा थे, उन्हें भी प्रमाद आ गया। निद्रा दर्शनावरणीय कर्म का उदय बढ़ता ही गया । फलस्वरूप सूर्यास्त होते ही सिर पर नींद सवार हो जाती थी, आंखे घेरने लगती थी । गुरुदेव उन्हें बारबार जगाकर सावधान करते हुये कहते थे कि हे पूर्वधर मुनि ! पूर्वो की पुनरावृत्ति कर लो, वरना भूल जाओगे परन्तु कर्म की गति न्यारी
SR No.002480
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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