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डिब्बा लेकर गांव के बाहर जंगल में गई । अकेली पुत्रवधू ने पत्थर की एक बड़ी भारी शिला को हटाकर आभूषणों का वह डिब्बा जमीन में गाड़ दिया । पुनः उस पत्थर की शिला को खींचकर उस पर ढक दी, और घर आकर बिस्तर में सो गई ।
दूसरे दिन शादी के प्रसंग में जाना था । अतः पुत्रवधु अलमारी खोलकर आभूषण पहनने गई, परन्तु आभूषणों का डिब्बा न देखकर सिर पीटकर चिल्लाती हुई रोने लगी । पति, सास, श्वसुर आदि सभी ढूंढने लगे, परन्तु वह डिब्बा किसी को कहीं भी नहीं मिला / पुत्रवधु ने रो-रो कर दिन बिताये और अपने पति से कहने लगी कि आप मेरी ऐसी क्रूर मजाक क्यों करते हैं ? आपने ही कहीं छुपाया होगा । लाइये, दे दीजिये । इस तरह आरोप-प्रत्यारोपों में ६ महीने बिताए ।
हुआ ऐसा कि छ: महीने बाद पुत्रवधु को थीर्णाद्धि निद्रा वापिस आई । पहले की भांति पुनः रात्रि में उठकर पुत्रवधु जंगल में गई, और पत्थर की उस शिला को हटाकर आभूषणों का डिब्बा लेकर, फिर पत्थर की शिला को पूर्ववत् रखकर, घर आकर आभूषणों के डिब्बे को आलमारी में रखकर सो गई । दूसरे दिन आलमारी में उस डिब्बे को देखकर खुश होती हुई पति, श्वसुरादि सबको दिखाकर पूछने लगी कि इसे छिपाने की मजाक किसने की थी ? सभी आश्चर्यचकित होकर "कि कर्तव्यमूढ़” बने हुये थे । एक वार महा ज्ञानीमुनि भगवंत के आगमन पर सेठ ने इस घटना के बारे में पूछा । ज्ञानी महाराज ने कहा कि - यह थीणद्धि निद्रा के कारण होता है । सेठ ने पुत्रवधू को अपने घर से निकालकर मायके
भेज दी ।
ट्रक भरकर खींच लिया
वर्तमान काल की बात है कि एक जगह एक मकान बनने का काम चल रहा था । निरीक्षकों ने मजदूरों को हुकम दिया कि कल सुबह एक ट्रक पत्थर पहाड़ी से लाकर यहां डाल देना । हां कहकर छुट्टी होते ही शाम को सभी मजदूर निकल गए । एक मजदूर ने धर आकर जल्दी सोते हुए अपनी पत्नी को कहा कि मुझे सुबह जल्दी उठाना, पत्थर भरने जाना है । ऐसा कहता हुआ उस विचार में सो गया ।
द्धिनिद्रा नामक दर्शनावरणीय कर्म के उदयवाला वह मजदूर मध्यरात्रि में उठा, नींद में ही वह ट्रक लेकर पहाड़ी प्रदेश में पहुँच गया । अन्य कोई मजदूर नहीं आये थे । अतः उसने अकेले ने ही बड़े-बड़े पत्थरों को उठाकर ट्रक भर दिया । जिन पत्थरों को चार जने मिलकर भी न उठा सकते थे उन्हें वह अकेला उठाकर ट्रक भरता
कर्म की गति न्यारी
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