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________________ दिन में जिस विषयक-कार्य का तीव्र आकांक्षा से जो चिन्तन किया हो और दिन में वह कार्य न करके सो गया हो, और रात को नींद में से उठकर उस कार्य को निद्रावस्था में ही करें, वैसी नींद को थीणद्धिस्त्यानद्धि नामक पांचवें प्रकार की नींद कहते हैं । इस प्रकार की नींद में मनुष्य ठीक जागते हुए की तरह सारे ही काम कर लेता है। फिर भी उसे पता नहीं रहता है। पुनः आकर सो जाता है । सुबह उठने के बाद कुछ भी याद नहीं रहता है कि मैंने यह काम किया है। इस प्रकार की नींद में अर्ध-चक्रवती अर्थात् वासुदेव के आधे बल के जितनी शक्ति रहती है । पर तु यह किसे ? इस प्रश्न के उत्तर में कर्मशास्त्रकार स्पष्टीकरण करते हैं कि जो जीव वज्रऋषभनाराच संघयण नामक प्रथम संघयण वाला होता है उसे यदि थीणद्धि निद्रा नामक दर्शनावरणीयकर्म उदय हो तो उसमें अर्धचक्रवर्ती अर्थात् वासुदेव के बल का आधा बल-शक्ति थीणद्धि निद्रा के उदय में रहती है। परन्तु ऐसा जीव मरकर नरक में जाता है "छेवट्ठा नामक छठे प्रकार का संघयण जिसके उदय में हो, (हमारे जैसे जीव) ऐसे जीवों को यदि थीणद्धि निद्रा नामक दर्शनावरणीयकर्म उदय में हो तो उनमें उस समय दुगुना, तिगुना बल भी बढ़ जाता है। स्त्याना संघातीभूता गृद्धिदिनचिन्तिनार्थसाधनविषयाऽभिकाङ्क्षायस्याम् सा स्त्यानगृद्धि । प्राकृतत्वात् “थीणद्धी" इति निपातः ॥ प्रथम कर्मग्रन्थ में “थीणद्धि" शब्द की व्युत्पत्ति उपरोक्त प्रकार से की गई है । “थीणद्धि" शब्द प्राकृत में है । वह निपात सिद्ध है। इसे संस्कृत में सत्याद्धि या सत्यान-गृद्धि कहते हैं। थीणद्धि निद्रा के कुछ दृष्टांतबिशेषावश्यक भाष्य नामक महाग्रन्थ में थीणद्धि निद्रा के विषय में भिन्नभिन्न प्रकार के दृष्टान्त बताए, गए है। जिसमें प्रमुख रूप से-१, मांसभक्षक, २. मोदकभक्षक, ३ हाथीमारक ४. कुम्हार ५. वटवृक्ष की शाखा तोड़ने वाला आदि विषयक दृष्टांत दिए हैं। (१) मांसभक्षक एक गांव था । इसमें "कणवी" जाति का एक मनुष्य रहता था। वह मांसभक्षी था । मांस खाने में बहुत ही ज्यादा लुब्ध था । कच्चा-पक्का कैसा भी मांस खा जाता था। एक बार की बात है, त्यागी तपस्वी जैन साधु गांव में पधारे । जैन साधु महाराजों ने कुछ दिन उस गांव में रहकर धर्मोपदेश दिया । लोगों को शराब-मांसादि ४८ कर्म की गति न्यारी
SR No.002480
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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