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________________ प्रभु के कंठ में से पुष्पमाला एवं हस्तकमल से फल दोनों उछलकर उंबरराणा के कंठ एवं हाथ में आ गई। प्रभु की अद्भुत गुण-स्तुति और यह चमत्कार वास्तव में महासती मयणासुन्दरी के द्वारा किये गये नमस्कार का शुभ परिणाम था । दूसरा एक प्रसंग इस प्रकार है। रत्तसंचया नगरी के राजा कनककेतु की पुत्री मदनमंजुषा एक बार जिनमन्दिर में दर्शन-पूजा करने गई। श्रीऋषभदेव भगवान की अद्भुत गुण-स्तुति, प्रभुदर्शन एवं अष्टप्रकारी पूजा करके मन्दिर से बाहर निकली। इतने में मन्दिर के द्वार बन्द हो गये जो सैकड़ों उपाय के बावजूद भी एक महीने तक नहीं खुले । योगानुयोग श्रीपालकुमार अपने प्रातःकाल के दर्शन-पूजा के नित्य नियमानुसार इस नगर में प्रभु दर्शन करने मन्दिर के द्वार पर आये ! कुवर गभारो नजरे देखतांजी, बेहु ऊघडीयां बार रे; देव कुसुम वरषे तिहांजी, हुवो जयजयकारजी ॥ दर्शन की अत्यन्त उत्कंठा एवं शुभ भावना के परिणाम स्वरूप मन्दिर के द्वार पर आकर खड़े रहते ही, श्रीपालकुवर की भक्ति भाव भरी दृष्टि द्वार पर पड़ते ही जिनमन्दिर के, एक महीने से बंद, द्वार एकाएक खुल गए । दर्शन मात्र से ही इतना अद्भुत चमत्कार होता है। शंखेश्वर तीर्थ के द्वार खुलेप्रसिद्ध स्तवन-सज्झायकर्ता पूज्यउदयरत्नजी महाराज एक बार विशाल पैदल संघ के साथ शंखेश्वरजी महातीर्थ यात्रा करने पधारे । मन्दिर के ठाकुर लोगों ने धन प्राप्ति के लोभ से द्वार बन्द कर दिये, और बिना पैसा दिये किसी को दर्शन नहीं करने देंगे- ऐसा ठाकुर लोग कह रहे थे। तीर्थयात्रा में दर्शनार्थियों को इस कठिनाई का सामना करना पड़ता था। इस दुर्दशा को देखकर उदयरत्नजी म. संघ के सभी सभ्यों के साथ बंद दरवाजे के सामने बैठ गए । सच्चे मन से एवं भक्ति से बाहर बैठे-बैठे ही प्रभु की गुणस्तुति करने लगे पास शंखेश्वरा सार कर सेवका, देवका एवडी वार लागे ? कोडी कर जोडी दरबार आगे खड़ा, ठाकुरा चाकुरा मान मागे.... ॥पास शं.।। कर्म को गति न्यारी
SR No.002480
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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