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________________ वे हृदय भी धन्य है जिन्होने आपका सदा स्मरण किया हैं, तथा वे दिन भी ध य हैं और वे रात भी धाय हैं जब जीवों ने आपको भजा है। दर्शन महिमा एवं स्वरूपवास्तव में शास्त्रों में दर्शन की महिमा अनुपम रूप से गाई गई है। दर्शनं देव देवस्य, दर्शनं पाप नाशनं । । दर्शनं स्वर्ग सोपानं, दर्शनं मोक्ष साधनं ॥ . देवताओं के भी देव-देवाधिदेव का दर्शन पाप का नाश करता है, स्वर्ग प्राप्ति के लिए सोपानरूप है और दर्शन मोक्ष प्राप्ति का परम सीधन है । दर्शनात् दुरितध्वंसी, वंदनात् बांछितप्रदः । पूजनात् पुरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्र मः ॥ प्रभु के दर्शन मात्र से दुरित अर्थात् विघ्नों का नाश होता है, वंदन मात्र से ही वांछित प्राप्त होता है, तथा पूजन मात्र से पूज्यता प्राप्त होती है । अतः जिनेश्वर भगवान मानो साक्षात् कल्पवृक्ष समान हैं। जिनेश्वर के दर्शन आदि का फल बताते हुए कहते हैं कि - • दर्शनेन जिनेन्द्राणां, साधूनां वन्दनेन च । न तिष्ठति चिरं पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम् ॥ जिनेश्वर भगवान के दर्शन से एवं साधु-महाराजाओं के वंदन से चिरकाल का लम्बा पाप खड़ा ही नहीं रहता है । जैसे छिद्र वाली अंजली में पानी नहीं ठहरता है, वैसे ही चिरकाल का पाप प्रभु दर्शन के बाद नहीं रहता है। प्रभु दर्शन के लिए उपमा देते हुए कहते हैं कि - प्रभु दर्शन सुख सम्पदा, प्रभु दर्शन नवनिद्ध । प्रभु दर्शन थी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध । प्रभु के दर्शन सुख की सम्पदा रूप है, प्रभु दर्शन ही नवनिधान है, प्रभु के दर्शन से ही सर्व पदार्थों की सिद्धि प्राप्त होती है। ऐसा दर्शनार्थी का भाव है।
SR No.002480
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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