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________________ बधिर-बहेरा, बनता है। किसी के कान ही नहीं बना है। किसी के नाक ही नहीं बना है। किसी के होठ नहीं बने है। किसी को सारी चमड़ी पर कुष्ट रोग है। तो किसी को खुजली है। कोई जन्म से ही मानसिक रोगी बनते हैं । बुद्धि नहीं मिलती या बुद्धि भारी कम मिलती है जिसके कारण या तो पढ़ाई में मन लगता ही नहीं है या पढ़ाई से जी उठ जाता है। पढ़ने की रुचि ही नहीं होती। या पढ़े तो समझ में ही नहीं आता या समझ में थोड़ा भी आता है तो याद नहीं रहता । ज्ञानावरणीय कर्म के कारण स्मृति-स्मरणशक्ति-यादशक्ति नष्ट हो जाती है । मिलती ही नहीं । कईयों को एक अक्षर भी याद नहीं रहता। कईयों का दिमाग काम ही नहीं करता दिमाग का विकास ही नही होता । अविकसित दिमाग और बुद्धि मानसिक विकलता है। कई मूर्ख तथा पागल बनते हैं। कई मुख रोगी तथा देह रोगी बनते है। जिस डाल पर बैठा हो उसी डाल को काट रहा हो ऐसी मूर्खता देखने को मिलती है। या कालान्तर में ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो ऐसे रोग उत्पन्न होते हैं। मनुष्य लड़खड़ाता है, या बिस्तर में पड़ा रहता है। बेशुद्धि भी जीवन में आती है । बेभान अवस्था में पड़ा रहता है । किंकर्तव्य मूढ बन जाता है । विवेक दशा नष्ट हो जाती है। अविवेकी निरर्थक प्रलाप करने वाला बनता है। इस तरह ज्ञानावरणीय कर्म के उदय में आने से ऐसी विचित्र दशा बनती है। बड़ी भारी दुःखी तथा दयनीय स्थिति पैदा होती है। पुस्तकादि जलाने का परिणाम एक परिवार के बच्चे स्कूल पढ़ने जाते थे। बच्चे स्वभाव से शरारती होते हैं । पढ़ाई करने के बजाय शरारत की होगी और जब शिक्षक के पूछने पर कुछ भी नहीं पाया तब शिक्षक ने थोड़ी सी पिटाई की। बच्चे रोते-रोते घर आए। मां ने देखा बच्चे रो क्यों रहे हैं ? पूछने पर पता चला कि शिक्षक ने मारा है अत: रो रहे थे। मां को बड़ा गुस्सा आया- तेरा भला हो ! बच्चे मेरे, मुझे प्यारे, और शिक्षक मारने वाला कौन होता है ? यह नहीं चलेगा। इतना कहते हुए मां ने बच्चों के हाथ से कॉपी-पुस्तक-पाटी-पेन सब लेकर रसोई घर में जलती सिगड़ी में डालकर जला दिया और बच्चों को कहा बैठ जाम्रो घर में, खुशी से खेलो, बस कल से स्कूल जाना ही नहीं । कुछ भी पढ़ना ही नहीं। छोड़ दो पढ़ना । खेलो-कूदो-मजा करो । यह सब कुछ चल ही रहा था कि पतिदेव घर में आए। उन्होंने यह देखा, उन्हें बड़ा भारी दुःख हुमा । पत्नी से कहा-अरे ! तूने ये क्या कर दिया ? पुस्तकें जला दी। कॉपी-पाटी सब जला दिया। अब बच्चे पढ़ेंगे कहां से ? और मास्टर ने मार भी दिया तो क्या हो गया । उस कहावत को याद करो- “सोटी वागें चमचम तो विद्या २५० कर्म की गति न्यारी
SR No.002479
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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