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समवसरण की एक तरफ चले मार्ग में समवसरण का वर्णन करते हुए तापसों को प्रभु के अतिशय समझा रहे थे । यह सुनते १५०० तापसों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। दूसरे ५०० तापसों को समवसरण देखते ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ। और तीसरे ५०० तापसों को प्रभु के दर्शन करते ही केवलज्ञात प्राप्त हुआ । इस तरह १५०० तापस केवलज्ञानी सर्वज्ञ बनकर समवसरण में जाकर केवली की पर्षदो में बिरजमान
इस तरह आगम शास्त्रों में केवलज्ञान प्राप्त करने वाले अनेक महारुपुषों के प्रसंग सुवर्णाक्षरों में लिखे गये हैं । भूतकाल में अनन्त आत्माएं केवलज्ञान पाकर मोक्ष में बिराजमान हुई हैं । मोक्ष में जाने के लिए केवलज्ञान आवश्यक है । अनिवार्य है । मोक्ष में जाने के बाद केवलज्ञानादि नहीं पाये जाते हैं, परन्तु सब कुछ यहीं पाकर ही मोक्ष में जाया जाता है। इस तरह अनन्त 'आत्माएं केवलज्ञान पाकर मोक्ष में गई हैं । यहां तो उदाहरणार्थ संक्षिप्त मात्र नाम निर्देश करते हुए कुछ प्रसंग दिखाये गये हैं, जिससे केवलज्ञान का स्वरुप समझ में आये । भरत क्षेत्र की वर्तमान अवसर्पिणी काल में अन्तिम केवली के रूप में श्री जंबुस्वामी सर्वज्ञ बनकर मोक्ष में गये हैं । परन्तु महाविदेह क्षेत्र में सदा ही मोक्षमार्ग खुला है । आज भी वहां से केवलज्ञान पाकर मोक्ष में जा रहे हैं । अन्त में प्रभु के चरणों में हम भी यही प्रार्थना करें कि
पारसनाथ पसाय करी म्हारी पूरी उम्मेद रे,
समयसुन्दर कहे हुं पण पामु, ज्ञाननु पांचमुभेद रे । समयसुन्दर मुनि ने अपने स्तवन में अन्त में जाकर प्रार्थना करते हुए कहा है कि-हे पार्श्वनाथ भगवान ! कृपा करके मेरी मनोकामना पूरी करो और वह यह है कि-मैं भी ज्ञान का पांचवां भेद अर्थात् केवलज्ञान प्राप्त करूं। पांच ज्ञान में पांचवां भेद जो केवलज्ञान है उसे हम सभी प्राप्त करें। जगत की सभी सम्यग् दृष्टि भव्यात्माएं केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पधारें यहीं शुभ मनोकामना ।
ॐ
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कर्म की गति न्यारी