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प्रागे चलते दासी पुत्री गर्भवती बनी। आजीविका की चिन्ता में सलाह मिलने पर कपिल राजा के राजमहल में प्रभात काल में ही पहुंच गया। संरक्षको ने पकड़कर राजा के समक्ष उपस्थित किया । पूछे जाने पर कपिल ने सारी हकीकत यथार्थ सत्य बता दी। कपिल के निष्कपट निर्दोष सत्य को जानकर राजा बहुत ही प्रसन्न हो गया और कहा मांगो तुम्हें जितना मांगना हो उतना मांगो। मैं देने के लिए तैयार है। बोलो कितना तोला सोना चाहिए ? २ मासा या १० मासा या सौ, हजार या लाख ? कितना चाहिए ? यह सुनकर कपिल ने कहा हे राजन् ! कृपया मुझे थोड़ा समय दीजिए, मैं सोचकर फिर आपके पास पाकर मांग लूंगा। इतने भोले-भाले भद्रिक कपिल को देखकर राजा को दया आई । अच्छा आओ-फिर सोचकर माना।
कपिल नजदीक के उद्यान में गया और एक वृक्ष के नीचे बैठकर सोचने लगा कितना मांगु ? २ मासा ? अरे । २ मासे से क्या होगा ? क्या १० मासा? अरे ! इतने से क्या होगा ? क्या १०० या हजार ? अरे ! जिंदर्मी कैसे निकलेगी ? लोभ का कहीं अन्त नहीं है, आखिर कपिल ने अपनी पूर्वावस्था पर विचार किया, अरें ! मैं क्या लेकर आया था ? मेरा क्या है ? बस आत्म चिन्तन का निमित्त मिल गया। पाप के पश्चाताप की धारा शुरू हो गई। कर्म क्षय करने के लिए प्रात्मा क्षपकश्रेणि पर आरुढ़ हो गई। धर्मध्यान से शुक्लध्यान की धारा में आगे बढ़ते हुए अध्यवसायों की विशुद्धी और गुणस्थानों पर अग्रसर होते ही कपिल ने मोह के बंधनों को तोड़कर वीतरागी होकर केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त कर लिया। सर्वज्ञ बने हुए कपिल केवली को देवताओं ने पाकर मुनिवेष अर्पण किया। पृथ्वीतल पर विचरते हुए महात्मा कपिल केवली के उपदेश से सैकड़ों भव्यात्मा केवलज्ञान पाकर मोक्ष में गए।
गुरु-शिष्य को केवलज्ञान-प्राचार्य चन्डरूद्राचार्य अपने क्रोधी स्वभाव के कारण गांव के बाहरी उद्यान में अकेले रहते थे। प्रसंगवश गाव में शादी की बरात आई । लग्त मुहूर्त को अभी समय था कि इतने में वरराजा के साथ उनके मित्र उद्यान में पाए। हंसी-मजाक करते हुए महात्मा के सामने वरराजा को आगे करते हुए मित्रों ने कहा महाराज इसको दीक्षा देकर साधु बना दीजिए। हंसी-मजाक कर रहे थे कि महात्माजी ने वरराजा को बालों से पकड़कर खिंचकर, देखते ही देखते सिर के सभी बाल खिच लिये। सिर का मुंडन हो गया। सभी मित्र भाग गए। शादी के लिए आए हुए वरराजा ने सोचा अरे ! अब तो लग्न मंडप में जाना उचित नहीं है चलो साधु बन ही गए हैं तो अब चारित्र पालन करू ! सोचा बरात वाले लोग पाकर शोरगुल मचाएंगे। महात्माजी को भली-बूरी सुनाकर मारपीट करेंगे। यह सोचकर शिष्य ने गुरुजी से कहा- अब जल्दी भगकर जाना पड़ेगा । गुरु ने कहा अरे ! मुझे तो दिखाई नहीं देता है, और अभी शाम हो चुकी है, थोड़ी देर में रात्री
कर्म की गति न्यारी
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