SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं है । जो कुछ भेद है वह शरीर में है । शरीर नामकर्मानुसार बनता है। जिस जीव के जैसे नामकर्म हो, और अपने-अपने कर्मानुसार जिस जीव ने जैसा शरीर निर्माण किया हो, तदनुसार जीव को वैसा शरीर मिलता है। इस कर्मसत्ता के आधार पर एक आत्मा को स्त्री. शरीर मिला है और एक जीव को पुरुष का शरीर मिला है। भेद मात्र शारीरिक है। स्त्री शरीर के अंगोपांग उसके योग्य और पुरुष शरीर के अंगोपांग भिन्न है। शरीर रचना का भेद या अंगोपांगों का भेद, यह भेद कोई प्रात्म-स्वरूप में भेद निर्माण नहीं करता है । मोहनीय कर्म के वेद मोहनीय कर्मानुसार स्त्रीवेद-और पुरुषवेद आदि की अवस्था विशेष है । परन्तु इससे आत्मा में कोई भेद नहीं पड़ता। प्रात्मा के ज्ञानादि गुण वे ही होते हैं तथा ज्ञानादि प्रात्मा के गुण हैं। अत: वे प्रकार के कर्मों के क्षय से जब प्रकट भी होंगे तब प्रात्मा में ही प्रकट होंगे-शरीर में नहीं । अतः ज्ञान के भेद में जब चार ज्ञान स्त्री को हो सकते हैं तो पांचवां केवलज्ञान भी स्त्री को होगा ही। दूसरी बात यह भी है कि देह भेद और वेद के भेद भी कहां तक रहते हैं ? प्रात्ता गुणस्थानों की श्रेणी में जब आगे बढ़ती है और क्षपकश्रेणी में ९वें अनिवत्ति बादर गुणस्थानक पर पाने के बाद तो अथाग पुरुषार्थ से कर्मों का क्षय करती हुई आत्मा कषायों के साथ नोकषाय एवं वेद मोहनीय का भी क्षय करती है। अत: स्त्री वेद और पुरुष वेद ये सभी वेद मोहनीय नौवें अनिवृत्तिबादर गुणस्थानक पर नष्ट हो जाते हैं । उसके बाद स्त्री-पुरुष का भेद ज्ञान ही नहीं रहता और न ही वह देह भेद की दृष्टि या वेद की दृष्टि कुछ भी नहीं रहता। तथा केवलज्ञान तो तेरहवें सयोगी केवलीगुणस्थानक पर जाकर होता है। फिर स्त्री या पुरुष के देह का प्रेश्न ही कहां रहा ? सामान्य तौर पर आज भी देखने पर यह स्पष्ट दिखाई देता है कि कई स्त्रियां ज्ञानादि क्षेत्र में काफी आगे हैं। पुरुष के समकक्ष तो क्या उससे भी आगे के क्षेत्र भी साध्र लिए हैं। अतः स्त्री को केवलज्ञान नहीं हो सकता और स्त्री मोक्ष में नहीं जा सकती, यह सब कपोल कल्पित मिथ्या बातें हैं । शास्त्र भी इस विषय में भूतकाल के कई प्रमाण देता है-"थीसिद्धा चंदणा पमुहा" स्त्री देह से सिद्ध बनने वालों में चंदना-(चंदनबाला) आदि कइयों के नाम हैं। भगवान महावीरस्वामी की प्रथम शिष्या चंदनबाला साध्वी केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में गई । तथा उनको मिच्छामिदुक्कडं देकर खमाती हुई उनकी शिष्या मृगावती साध्वी भी केवलज्ञान पाकर मोक्ष में गई-"अतिथसिद्धा य मरुदेवी"-प्रतीर्थ सिद्ध के भेद में मरुदेवी माता का नाम प्रमुख रूप से प्राता है। भगवान ऋषभदेव की माता मरुदेवी भी अनित्य एकत्व भावना का चिंतन करती हुई इसी प्रक्रिया के राजमार्ग से क्षपकश्रेणि पर चढ़कर चारों घनघाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त करके अन्तर्महूर्त में केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में गई । ३१० कर्म की गति न्यारी
SR No.002479
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy