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है कि-"मोहक्षयात-ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्चकेवलम्" मोहनीय कर्म के क्षय से तथा ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय एवं अन्तराय कर्म के क्षय से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रतः केवलज्ञानादि की प्राप्ति में मोहनीय का क्षय भी अनिवार्य है । वह भी सबसे पहले मोहनीय का क्षय होना जरूरी है।
गुणस्थानकों की साधान में कर्म क्षय
जैसे-जैसे कर्मों का क्षय होता जाता है वैसे-वैसे आत्मा के आच्छादित गुणों का प्रकटीकरण होता जाता है । उन-उन गुणों को प्राप्त करती हुई प्रात्मा मोक्ष की दिशा में अग्रसर होती है । अत: उन-उन गुणों के स्थान पर आत्मा जहां जिस स्वरूप में स्थित होती है उन्हें गुणस्थान कहते हैं। ऐसे १४ गुणस्थान जैन दर्शन में बताए गए हैं। इसे The Way of Soulvation या The Way of the Emanci. pation of the Soul मोक्ष मार्ग या प्रात्मा का मार्ग कहते हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए तथा प्रकार के गुणों को होना आवश्यक है। प्रतः गुणस्थानक को मोक्ष मार्ग बनाया गया है। जिन गुणों को प्राप्त करती हुई प्रात्मा प्रागे बढती है ऐसे १४ गुणस्थान बताए गए हैं । (इनका विस्तृत वर्णन योग्य स्थान पर करेंगे ।) उनके नाम इस प्रकार है ।-(१) मिथ्यात्व, (२) सास्वादन, (३) मिश्र, (४) प्रविरति सम्यग् दृष्टि, (५) देश विरति सम्यग् दृष्टि, (६) सर्व विरति प्रमत्त, (७) सर्व विरति अप्रमत्त (८) अपूर्वकरण, (९) अनिवृत्तिबादर, (१०) सूक्ष्मसंपराय, (११) उपशांतमोह, (१२) क्षीणमोह, (१३) सयोगी केवली, प्रौर (१४) अयोगी केवली।
कर्म क्षय और गुण प्राप्ति __ इन १४ गुणस्थानकों की साधना में प्रांगे चढ़ना तभी संभव है जब प्रात्मा उन-उन कर्मों का क्षय या क्षयोपशम करके आगे बढ़े । पहले गुणस्थान से १२वें क्षीण मोह तक के सभी गुणस्थानों में एक मात्र मोहनीय कर्म का क्षयोपशम एवं क्षय करने की ही साधना है। मोहनीय कर्म के प्रवान्तर भेद उनकी प्रकृतियों के प्राधार पर अनेक बताए गए हैं। उन प्रकृतियों का क्षय या क्षयोपशम करने से मोहनीय के वे प्रावरण हटते जाएंगे और प्रात्मा के गुण प्रकट होते जाएंगे। मिथ्यात्व हटते सम्यक्त्व होगा। कषायों की अवस्थाएं हटते निष्कषाय समता भाव प्रकट होगा। विषय पासना की वृत्ति हटते ही प्रात्मा निर्विकारी निर्वेदी बनेगी। हास्यादि हटते ही
कर्म की गति न्यारी