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हो जाते हैं, जबकि केवलज्ञान के लिए ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ केवलज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से ही प्रकट हो जाय ! नहीं। न सिर्फ केवलज्ञानावरणीय कर्म या न ही सिर्फ ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से यह होता है, अपितु चारों घाती कर्मों की सर्व प्रकृतियों का सर्वथा क्षय होने से केवलज्ञान होता है । इतना इनमें अन्तर है । अत: चार ज्ञान क्षायोपशमिक भाव जन्य है और पांचवां केवलज्ञान क्षायिक भाव जन्य है । क्षायोपशमिक की प्रक्रिया में ज्ञान सर्वांश संपूर्ण रूप से प्रकट नहीं होता है । अतः उस ज्ञान का ज्ञानावरणीय कर्म शेष रहता है जबकि केवलज्ञान चारों घाती कर्मों के सर्वथा सम्पूर्ण रूप से क्षय होने के बाद ही क्षायिक भाव से उत्पन्न होता है। अतः केवलज्ञान की उत्पत्ति के बाद ज्ञानावरणीय कर्म का या चारी घाती कर्म की प्रकृतियों का अंश मात्र भी उदय या सत्ता नहीं रहती । वे सर्वथा क्षय अर्थात् समूल नष्ट हो जाते हैं प्रतः केवलज्ञान पूर्ण-सम्पूर्णरूप से सर्वग्राही, सर्वांशग्राही, सर्व द्रव्यगुण-पर्यायग्राही होता है । अतः इसे अनन्त वस्तु विषयक ज्ञान कहते हैं । इसीलिए यह अनन्त ज्ञान के रूप में कहलाता है।
घाती कर्मों के क्षय की प्रक्रिया मुख्यरूप से प्रात्मा के ज्ञानादि प्रमुख गुणों का घात करने वाले चार घाती कर्म हैं । इन घाती कर्मों के कारण प्रात्मा के ज्ञानादि गुण ढके हुए पाच्छादित हैं, दबे हुए हैं । इन ज्ञानादि गुणों को प्रकट करने के लिए इन्हीं घाती कर्मों का क्षय करना एक मात्र विकल्प है-(1) ज्ञानावरणीय, (2) दर्शनावरणीय, (3) मोहनीय
और (४) अन्तराय-ये चार घाती कर्म प्रात्मा का जितना नुकसान करते हैं, उतना प्रघाती कर्म नहीं करते हैं । इन चार घाती कर्मों के क्षय की प्रक्रिया में देखा जाय तो मोहनीय कर्म सबसे प्रबल है। इसे (King of Karma) कर्मों का राजा कहा जाता है । चार घाती कर्मों का क्रम देखने से ऐसा लगता है कि पहले ज्ञानावरणीय का क्षय करना पड़ेगा। इसके क्षय से जब पूरा ज्ञान प्रकट हो जायेगा तथा उस पूर्ण ज्ञान की मदद से मोहनीय कर्म का क्षय कर सकेंगे। ऐसा ऊपरी दृष्टि से जरूर लगता है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । ज्ञानादि गुणों को दबाने में तथा ज्ञानावरणीय कर्म की लगाम अपने हाथ में रखने का कार्य भी मोहनीय कर्म करता है। प्रतः वाचक मुख्यजी उमास्वाति महाराज का कहना है कि मोहनीय कर्म का प्रथम क्षय करना होगा तब बाद में शेष तीन घाती कर्मों का भी क्षय हो जाएगा, और क्षय होते ही केवलज्ञानादि गुण प्रकट हो जायेगे। अत: तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में दिया
कर्म की गति न्यारी
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