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अनुमानप्रमाण
स्वार्थानुमान
परार्थानुमान
अनुमान के दो भेद होते हैं--(१) स्वार्थानुमान और (२) परार्थानुमान । (१) स्वार्थानुमान -अन्यथानुपपत्ति रूप हेतु ग्रहण करने के सम्बन्ध के स्मरण पूर्वक साध्य के ज्ञान को स्वार्थानुमान कहते हैं ।
___ (२) परार्थानुमान-पक्ष और हेतु कहकर दूसरे को साध्य के ज्ञान करने को परार्थानुमान कहते हैं । परार्थानुमान को उपचार से अनुमान कहा गया है ।
(५) आगम (शब्द) प्रमाणः-प्राप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः । “उपचारादाप्तवचनं च"इति ।
प्राप्त के वचन से पदार्थों का जो ज्ञान होता है उसे पागम या शब्द प्रमाण कहते हैं। प्राप्तस्तु यथार्थ वक्ता यथार्थ बोलने वाले को ही प्राप्त पुरुष कहते हैं। लौकिक और लोकोत्तर के भेद से प्राप्त. पुरुष दो प्रकार के होते हैं। सर्वज्ञ लोकोत्तर प्राप्त महापुरुष के वचन को पागम कहते हैं। प्रागम प्रमाण से अनेक पदार्थों का ज्ञान होता है । इस तरह जैन दार्शनिकों ने स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, ऊह, अनुमान और पागम प्रमुख परोक्ष प्रमाण के पाँच प्रकार दर्शाये हैं। अन्य उपमान, अर्थापत्ति, सम्भव, प्रातिभ, ऐतिह्य आदि प्रमाणों का उपरोक्त पांच में ही अतभाव होता है। अत: इन्हें स्वतन्त्र रूप से अलग गिनने की आवश्यकता नहीं है। सन्निकर्ष आदि को जड़ होने के कारण प्रमाण नहीं कहा जा सकता है । इस तरह यह ज्ञानोत्पत्ति प्रक्रिया में प्रमाण के स्वरूप का विवेचन किया है। आगमप्रमाण के आधार पर ही जीव-अजीव, पुण्य-पाप, पाश्रृज-संवर, बंध-निर्जरा, लोक-परलोक, स्वर्ग-नरक तथा मोक्षादि तत्त्वों का स्वरूप सही अर्थ में यथार्थ रूप से जान सकते हैं।
स्वसंवेद्य-ज्ञान
ज्ञान स्व संवेद्य कहा जाता है। संवेद्य अर्थात् अनुभूति । ज्ञान की अपनी अनुभूति अर्थात् संवेदन स्वत: ही होता है न कि स्वेतर संवेद्य । जिस तरह एक दीपक को देखने के लिए दूसरे दीपक की आवश्यकता नहीं होती है वैसे ही एक ज्ञान
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कर्म की गति न्यारी