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ज्ञानोत्पति की प्रक्रिया में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार से ज्ञान होता है । अतः इन दोनों को प्रमाण रूप गिना गया हैं । उपरोक्त तालिका में किये गये निर्देशानुसार प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष दो भेद होते हैं । प्रत्यक्ष के सांव्यवहारिक और पारमार्थिक दो भेद होते है । साँव्यवहारिक प्रत्यक्ष इन्द्रिय और मन से उत्पन्न होता है । अत: साँव्यवहारिक प्रत्यक्ष के ऐन्द्रियप्रत्यक्ष और प्रतीन्द्रियप्रत्यक्ष ये दो भेद बनते हैं। पांचों इन्द्रियां और छट्ठा अतीन्द्रिय-मन इन ६ से ये दो प्रत्यक्ष होते हैं । इन दोनों का ज्ञान १ श्रवग्रह २. ईहा ३ अवाय ओर ४. धारणा इन चार भेद से होता है ।
इन्हीं चारों से मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होता है । (जिनका विवेचन पहले किया गया है ।) अतः मतिज्ञान और श्रुतज्ञान साँव्यवहारिक ऐन्द्रिय प्रत्यक्ष एवं श्रतीन्द्रिय प्रत्यक्ष से उत्पन्न होते हैं ।
प्रत्यक्ष का दूसरा भेद पारमार्थिक प्रत्यक्ष जो है उसे ही श्रात्मप्रत्यक्ष या नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष भी कह सकते हैं । क्योंकि यह बिना किसी इन्द्रियों की मदद से सीधे आत्मा से होता है एवं परमार्थ को जानता है अतः पारमार्थिकप्रत्यक्ष या श्रात्मप्रत्यक्ष कहा जाता है । पारमार्थिक प्रत्यक्ष क्षायोपशमिक एवं क्षायिक के भेद से दो प्रकार का होता है । आत्मा के ऊपर जिन कर्मों का प्रावरणं है उनका जितने अंश में क्षयोपशम एवं क्षय होगा उतने अंश में पारमार्थिक ज्ञान प्रकट होगा । जब उन उन ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम होगा तब अवधिज्ञान और मन:पर्यवज्ञान होगा । श्रतः क्षायोपशमिक पारमार्थिक प्रत्यक्ष के (१) अवधिज्ञान और (२) मनः पर्यवज्ञान ये दो भेद कहलाते हैं । ये दोनों ज्ञान बिना किसी इन्द्रिय की मदद के सीधे श्रात्मा से ही होते हैं । अवधिज्ञान से आत्मा सीधे ही दूरस्थ रूपी पदार्थों का साक्षात्कार करती है । उसी तरह मनः पर्यवज्ञान से मन वाले संज्ञो पचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों अथवा विचारों को सीधे ही जान सकती है । पारमार्थिक क्षायिक प्रत्यक्ष सर्वथा घाती कर्मों के सम्पूर्ण क्षय से उत्पन्न होता हैं। अतः उसे पूर्णज्ञान या केवलज्ञान कहते हैं । इसे ही अनन्त ज्ञान भी कहते हैं । केवलज्ञान से सम्पूर्ण लोकालोक के अनन्त पदार्थों का एवं उनके गुण व पदार्थों का भी एक साथ ज्ञान होता है । यह पारमार्थिक प्रत्यक्ष के क्षायिक केवलज्ञान का स्वरूप हुआ । बिना किसी इन्द्रिय की मदद से समस्त ब्रह्मांड के अनंत द्रव्य-गुण- पर्यायों का एक
सीधे आत्मा से केवलज्ञान के द्वारा साथ प्रत्यक्ष ज्ञान होता है ।
परोक्षज्ञान का स्वरूप
उपरोक्त तालिका में बताये अनुसार परोक्ष प्रमाण के पांच भेद होते हैं । "परोक्षं च स्मृति प्रत्यभिज्ञानोहानुमानागमभेदात् पंच प्रकारम् !” अर्थात् (१) स्मृति
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कर्म की गति न्यारी