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बंधता है तथा जीव जन्म-जन्मांतर में उनकी सजा भोगता है । अत: समझदार इन्सान को ऐसे ज्ञानातिचार दोषों का सेवन नहीं करना चाहिए ।
श्रुत मद ज्ञानातिचार
श्रुत प्रर्थात् शास्त्र - आगम ग्रन्थादि । सभी जीव को अपने-अपने क्षयोपशम के आधार पर शास्त्रादि का ज्ञान प्राप्त होता है । मनुष्य को चाहिए कि अपने ज्ञान का कभी श्रभिमान न करे । अभिमान किसी भी क्षेत्र में नुकसानकारक ही होता है । कर्म शास्त्र का नियम है कि जिस विषय का अभिमान किया जाता है वही वस्तु उससे ठीक विपरीत मिलती है । जीवन में अभिमान के कई क्षेत्र बताये हैं । जाति, कुल, बल, रूप, तप, लाभ, धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य आदि अनेक प्रकारों के अभिमान में श्रुत का भी अभिमान एक प्रकार का है । मुझे बहुत आता है, मैं सब कुछ जानता हूं, मेरे से इस जगत में कुछ भी अन्जाना नहीं है, यह मेरे बांए हाथ का खेल है, ऐसे तो सैकड़ों विषय मेरी जेब में भरे पड़े हैं इत्यादि शेखचल्ली के काल्पनिक विचार मानव मन की अभिमान की मात्रा को प्रकट करते हैं । शास्त्रकार महर्षि कहते हैं कि ऐसा श्रुतमद- अभिमान भी ज्ञानी को सेवन नहीं करना चाहिए चूंकि श्रुत-ज्ञान का अभिमान करने से ज्ञानवरणीय कर्म बंधता ही है तथा साथ-साथ नीच गोत्र कर्म का भी बंध होता है । नीच गोत्र बांधकर आगामी भवों में जीव नीच हल्के कुल में जन्म लेता है |
इस विषय में एक दृष्टांत महान काम विजेता दश पूर्वधर महापुरुष स्थूलभद्रस्वामी का दिया गया है । १४ पूर्वधारी महान गीतार्थ ज्ञानी भगवंत श्री भद्रबाहुस्वामी महाराज के पास पूज्य स्थुलिभद्रस्वामीजी पढते थे । दश पूर्वो का अध्ययन कर चुके थे । एक बार स्वाध्यायार्थ समीपस्थ स्थान में बैठे थे कि उनकी सेणा, वेणा, रेणा श्रादि सात बहन साध्वियां उन्हें वंदना करने गई । भाई स्थूलभद्रस्वामी को ऐसा विचार प्राया कि इतना पढ़ा लिखा मैं भी कुछ हूं श्रतः बहनों को ऐसा कुछ चमत्कार दिखाऊँ, ऐसा सोचकर उन्होंने सिंह का रूप धारण किया। बहनों ने प्रांते ही सिंह देखा और घबडा गई । दौड़ती हुई बहनें आचार्य भद्राहस्वामी के पास गई और निवेदन किया कि हे भगवंत ! हमारे भाई महाराज स्थूलभद्रजी को सिंह खा गया हो ऐसा लगता है । महान् ज्ञानी भद्रबाहुस्वामी ने इस बात का रहस्यार्थ जान लिया और बहनों को पुनः वंदना करने के लिए जाने की आज्ञा दी । बहनें गई और वंदना करके लौट गई। जब स्थुलिभद्रजी आगामी पाठ के लिए प्राचार्यश्री के पास पधारे तब आचार्यश्री ने कहा तुमने श्रुत का अभिमान किया है । तुम्हें ज्ञान का अजीर्ण हो गया है । अत: अब आगे के ज्ञान तुम नहीं पा सकोगे । अभिमान की कक्षा यह ज्ञान की पात्रता
पूर्वी का
नहीं है ।
कर्म की गति न्यारी
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