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बनता, सिर्फ जीव अकेला ही रहता है। अब उस जीव को ईश्वर पाप कर्म के फल के रूप में सजा देता है। उसे सजा देने के लिए नरक में भेजता है और वह नरक भी ईश्वर ने ही बनाई है। वहां नरक में उस को खूब मारता है, खूब दुःखी करता है । बेचारे जीव को मार-मार कर चटणी बना देता है। काट-काट कर टुकड़े कर देता है । पकोड़ी की तरह ऊबलते तेल की कढ़ाई में तलता है। इतना जब ईश्वर करता है तब ईश्वर की दया-करुणा कहां गयी ? तो क्या ईश्वर में से दया-करुणा चली भी जाती है क्या ? क्रूरता और निर्दयता आती भी है क्या ? चूंकि अनुग्रहनिग्रह दोनों ही कार्य ईश्वर करता है प्रतः दया-करुणा और · क्रूरता-निर्दयता दोनों ही ईश्वर में मानने पड़ेंगे। और दोनों अवस्था के आधीन जब ईश्वर एक को स्वर्गीय सुख देने का और दूसरे को रौरव नरक में दुःख देने का काम करेगा, तब क्या ईश्वर को कोई पुण्य-पाप नहीं लगेगा ? वाह भाई वाह ! पुण्य पाप जीव को लगता है और कराता है सब कुछ ईश्वर ! फिर फल देने की सत्ता भी ईश्वर के हाथों में ! फल देने का काम भी ईश्वर ही करता है ? अरेरे....! इसकी अपेक्षा ईश्वर जीवों को कुछ भी कराए ही नहीं तो फिर अच्छे-बूरे का प्रश्न ही खड़ा नही होगा। तो फिर फल देने की नौबत ही नही आयेगी। अच्छा यही है कि हम यही पक्ष मानें । क्यों दयालु-करुणालु ईश्वर के हाथ निर्दयता
और क्रूरता के रंग में खराब करते हो ? क्यों ईश्वर के हाथ नरक में जीव को कटवाकर खून से लथपथ करते हो ? अरे भाई ! ईश्वर को इतनी निम्न श्रेणी तक तो मत ले जानो। ईश्वर को क्रूर नरकसंत्री, परमाधामी की तरह मत बना दो। बचानो........बचाओ....... ! ईश्वर का स्वरूप बचायो । बचाओ........बचानो.....! ईश्वर का स्वरूप विकृत होने से बचानो। ईश्वर का स्वरूप गिरने से बचायो । शायद हमें ऐसा ईश्वर बचानो का आन्दोलन करना पड़ेगा। ईश्वर को जेलर बनने से रोको । ईश्वर को कोड़े मारने वाला बनने से रोको। यदि फल देने का कार्य ईश्वर अपने हाथ में ले लेगा तो ईश्वर का एक स्वरूप या एकसा शुद्ध स्वरूप टिक ही नहीं पायेगा । फिर तो जज, न्यायाधीश, पोलीस, हंटर-कोड़े मारने वालों को भी ईश्वर या ईश्वरावतार या ईश्वर स्वरूप ही मानना पड़ेगा। अरेरे ! ईश्वर को इतना निम्न स्तर पर ले जाने का पाप किस के सिर पर रहेगा ?
ईश्वर में सर्वगतत्वादि भी सिद्ध नहीं होगा।
सृष्टिकर्ता ईश्वर को सृष्टि निर्माणार्थ यदि सूक्ष्म शरीरी, या अशरीरी भी मानेंगे तो वह भी उपयुक्त नहीं होगा । या अदृश्य शरीरी भी मानेंगे तो भी उपयुक्त नहीं होगा। चूंकि अनन्त कार्य निर्माणार्थ अनन्त शरीर बनाये तो स्वशरीर बनाना ही सृष्टि हो जाएगी। फिर ईश्वर स्वशरीर बनायेगा कि अन्य सृष्टि बनायेगा ?
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कर्म की गति न्यारी