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________________ याद करें । लेकिन वह भी नहीं । एक तरफ संतान के प्रभाव वाले को संतान देकर दूसरी तरफ संतान की जन्म दाता माता को उठा लेता है। अब और भी समस्या बढ़ गई । ऐसे कारणों से ईश्वर की दया-करुणा के विषय में शंका उत्पन्न होती है। क्यों नहीं ईश्वर अपनी दया करुणा का उपयोग करता है जबकि उसमें पड़ी है तो ? हम वर्तमान विज्ञान युग में देखते हैं कि एक मशीन यदि लाखों वस्तुएं ग्लास आदि बनाती है तो वे लाखों ग्लास एक सरीखे बनाती है । एक से दूसरे में कोई भेद नहीं । परन्तु यहां ईश्वर की रचना में तो वह भी नहीं है। एक मां के चार पुत्र हैं तो वे भी वर्णादि में भी समान नहीं हैं। उसी तरह स्वभावादि में भी समान नहीं है । एक का स्वभाव दूसरे से नहीं मिलता, यह कैसी विषमता है। समुद्र का इतना पानी होते हुए सारा ही खारा है। अच्छा यह पूछा जाये कि ईश्वर सष्टि क्यों बनाता है ? क्या ईश्वर का स्वभाव है ? उत्तर में यदि हां कहते हैं कि सृष्टि निर्माण करना ईश्वर का स्वभाव विशेष है तो वह स्वभाव ईश्वर के साथ सदा ही रहेगा । यदि ईश्वर .शान्त नहीं और नित्य है तो वह सृष्टि निर्माण का स्वभाव भी नित्य रहेगा । तो फिर उस स्वभाव के आधीन नित्य ईश्वर सदाकाल सृष्टि निर्माण का कार्य ही करता रहेगा। फिर वह सृष्टि निर्माण को छोड़कर अन्य कुछ भी करे यह सम्भव ही नहीं है । तो फिर नित्य ईश्वर नित्य काल तक निरन्तर सतत सृष्टि निर्माण करता ही रहेगा । यह सातत्य रहेगा । चूंकि ईश्वर स्व सत्ता से नित्य है और सष्टि रचना का स्वभाव भी नित्य है तो सृष्टि रचना का कार्य भी निरंतर सतत चलता ही रहेगा। और यदि यह स्वीकार करेंगे तो सृष्टि को अपूर्ण ही माननी पड़ेगी। कभी भी सष्टि पूरी रची गई है यह कह ही नहीं.सकेंगे। चूंकि जो कार्य अविरत चल रहा है, चालू है उसे समाप्त हुआ यह कैसे कह सकेंगे ? तो तो फिर नित्य ईश्वर सदा काल ही सृष्टि निर्माण करता रहेगा, तब तक सदा काल ही सष्टि रचना पूर्ण हो गई है, यह कहना सम्भव भी नहीं होगा। हजारों लाखों साल के बाद भी पूछेगे तो भी उत्तर यही मिलेगा कि अभी भी रचना कार्य जारी है । चल रहा है । अच्छा यह स्वीकारने पर ईश्वर को सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी कैसे कह सकेंगे ? सर्वशक्तिमान होते हुए भी ईश्वर इतने लम्बे काल से कार्यरत होते हुए भी अभी तक भी एक सृष्टि रचना का भी कार्य समाप्त नहीं कर सका है तो फिर सृष्टि के प्रलय की बारी तो कभी भी आयेगी ही नहीं। यदि सृष्टि रचना ही पूरी नहीं हुई है वही अपूर्ण है तो फिर प्रलय करेगा किस का ? क्या रचना पूरी किये बिना ही प्रलय कर देगा ? सृष्टि अपूर्ण और प्रलय पूरा यह कैसे स्वीकारें ? जो नहीं बना है उसका प्रलय कैसे संभव है ? जो पुत्र जन्मा ही नहीं वह मर गया यह परस्पर विरोधाभास खड़ा करेगा। ७८ कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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