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___ दूसरी तरफ ईश्वर के जिम्मे काम भी कई हैं। पहले सृष्टि निर्माण करना, फिर पालन करना, फिर जीवों को कर्मफल देना, फिर सृष्टि का प्रलय करना, इत्यादि । मान लो काम ज्यादा है । इसलिए ईश्वर के तीन रूप की व्यवस्था की है । एक सृष्टि कर्ता, दूसरा पालनहार और तीसरा प्रलयकर्ता संहारक ! तो कर्मफल दाता के रूप में क्यों किसी की व्यवस्था नहीं है । फिर ईश्वर को एक रूप में ही मानें या अनेक रूप में मानें ? चूंकि कार्य व्यवस्थानुसार तीन रूप स्वीकारे गये हैं, तो फिर सृष्टि में तो एक नहीं, अनेक कार्य हैं। पृथ्वी, पर्वत, समुद्र, नदी, नद, वृक्ष, स्वर्गनरक, पाताल, पशु-पक्षी, कृमि कीट-पतंग आदि सैकड़ों, हजारों लाखों नहीं, अगणित कार्य हैं । तो ईश्वर क्या अपने अगणित रूप करता है ? या अगणित ईश्वर मिलकर कार्य करते हैं ? या एक ही ईश्वर क्रमश: एक के बाद एक कार्य करता है या किस तरह की व्यवस्था है ? इस समस्या को हल करने के लिए यदि आप यह कहो कि ईश्वर क्रमशः एक के बाद एक कार्य करता है। तो पहले-पीछे की क्रम व्यवस्था किस तरह बैठाई है। पहले क्या बनाया ? बाद में क्या बनाया ? फिर उसके बाद क्या बनाया ? इत्यादि । मनुस्मृति में बताये गये क्रम के अनुसार समझ लिया जाय कि इस क्रम से बनाया है तो क्या सभी कार्य समाप्त हो गये ? यदि यह कहते हो तो अब सृष्टिकर्ता ईश्वर की निरुपयोगिता सिद्ध होगी। अब ईश्वर को निरर्थक निष्काम बैठा रहना पड़ेगा तो शायद ईश्वर के नित्यत्व के प्रस्तित्व पर भी वज्रपात होगा।
अच्छा क्रमश: उत्पत्ति स्वीकार करने में नाना ईश्वर की कल्पना सामने प्रायेगी । कितने ईश्वरों ने मिलकर सृष्टि का कार्य किया है ? नाना ईश्वर मानने में एकेश्वरवाद का पक्ष चला जायेगा और नाना नहीं मानें तो अनन्त ब्रह्माण्ड, स्वर्गपाताल, नरक, मनुष्य, कृमि, कीट-पतंगादि किस क्रम से क्या और कैसे माने ? इसमें क्रमापत्ति पायेगी । पाप ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वगत मान लेंगे तो भी एक ईश्वर
और अगणित असंख्य कार्य कैसे होंगे ? अच्छा सशरीरी मानकर तो सर्वव्यापी सर्वगत मानने में परस्पर विरोध प्रायेगा। और अशरीरी मानने में सर्वव्यापी, सर्वगत हो जायेगा तो सभी कार्य अशरीरी कैसे करेगा ? आकाश भी अशरीरी सर्वव्यापी सर्वगत है तो फिर आकाश को ही ईश्वर मानने की आपत्ति खड़ी होगी। वह भी नित्य है । लेकिन अाकाश निर्जीव, निष्क्रिय है । ईश्वर तो सक्रिय है ।
अच्छा आप सारी सृष्टि सह-भू एक साथ ही उत्पन्न हुई है ऐसा मानोगे तो या तो ईश्वर को जादूगर मानना पड़ेगा जैसा कि कहते हैं कि हमारे ईश्वर ने एक जादू किया और सारा संसार बन गया । कोई कहता है कि कुन्द शब्द कहा और सृष्टि बन गई। तो इन्द्रादि भी इन्द्रजाल करते हैं। जादुगर भी अपने जादू
कर्म की गति न्यारी