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पदार्थ थे उनको लेकर कुम्हार ने उनके द्वारा घडे बनाए हैं । अत: सबसे बड़ा सृष्टि का रचयिता जिसको वेद में कुम्हारादि कहा गया है उसने यह सृष्टि कैसे बनाई ? कुम्हार की तरह ही बनाई तो मतलब यह हुआ कि बनाने योग्य पदार्थ, घटक पदार्थ पहले से ही थे, केवल ईश्वर उनका संयोजन करने वाला संयोजक ही रहा । जैसा कि नैयायिक कहते हैं कि परमाणु तो थे ही । परन्तु परमाणुओं को जोड़ने का, संयोजन करने का कार्य ईश्वरेच्छा से हुआ । परमाणुओं के मिश्रण से जिस तरह द्वयणुक, त्रयणुक, चतुर्णक आदि बनते गए और इस तरह महा स्कंध बने । इस तरह जगत के प्रनन्त पदार्थ बने । परमाणु वाद पर सृष्टि का आधार रख कर भी परमाणु संयोजन में ईश्वरेच्छा का तत्त्व बीच में लाकर नैयायिकों ने वैज्ञानिकता सिद्ध नहीं की है । दूसरी तरफ अपने आप को महान तार्किक, तर्क रसिक कहने वाले एवं प्रत्यक्ष को भी अनुमान से सिद्ध करने वाले तर्कविलासी तर्क जीवी नैयायिकों ने ईश्वरेच्छा को सिद्ध करने के लिए कोई तर्क नहीं दिये यही बडा आश्चर्य है । ईश्वर इच्छा क्यों है ? क्यों इच्छा तत्त्व परमाणुत्रों का संयोजन करे ? कैसे करे ? यहां कोई तर्क युक्ति नहीं है ।
यदि ईश्वर विश्वकर्मा है जो कुम्हार कुविन्द - कुलाल की तरह सृष्टि की रचना करता है तो सृष्टि की रचना में सहायक घटक द्रव्य जो पृथ्वी - पानी - अग्नि वायुश्राकाशादि की सत्ता यदि ईश्वर के पहले ही सिद्ध हो जाती है तो फिर ईश्वर ने क्या बनाया ? यदि आप ये कहें कि ईश्वर ने तो सिर्फ पृथ्वी-पानी श्रादि के संयोजन संमिश्रण ही किया है तो फिर यह कार्य तो जीव भी करता ही था । और ईश्वर के पहले ये पदार्थ थे तो ईश्वर को सृष्टिकर्ता क्यों कहें ? नगर कर्ता भवन कर्ता आदि ही कहना पडेगा । जैसा कि कुम्हार को घट कर्ता कहते हैं न कि मिट्टी-पानी का कर्ता । तन्तुवाय - कुलाल कुविद को वस्त्र का कर्ता कहते हैं न कि रूई कपास का कर्ता । इस तरह ईश्वर का सृष्टि कर्तृत्व ठहर नहीं सकता ।
सृष्टिकर्ता ईश्वर यदि सादि है तो क्या अपने आप उत्पन्न हो गया ? अच्छा मान भी लें । यदि सृष्टिकर्ता ईश्वर अपने आप उत्पन्न हो सकता है तो जगत् अपने आप क्यों नहीं उत्पन्न हो सकता ? जगत् को भी स्वयंभू मानने में क्या प्रापत्ति है ? जड़-चेतन पदार्थों के संयोग-वियोग और जड़ पदार्थों में भी घात संघात विघात की प्रक्रिया चलती ही है जिससे गुण धर्मादि में परिवर्तन आते ही रहते हैं तो इस तरह वहां बीच में ईश्वर को लाने की श्रावश्यकता ही नहीं है । यदि यह पूछा जाय कि ईश्वर स्वयंभू नहीं है और सादी है तथा उसकी उत्पत्ति में अन्य कारण हैं । यदि अन्य कारण मानते हैं तो उन कारणों का तथा कारण के घटक द्रव्यों का
कर्म की गति न्यारी
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