________________
दूसरी तरफ यदि संसार को अनादि मानते हैं तो अनादि की तो उत्पत्ति संभव नहीं है । जो उत्पन्न हो उसे अनादि कैसे कहेंगे ? अतः न तो ईश्वर को अनादि कह सकेंगे और न ही सृष्टि को। जो अनुत्पन्न होता है वही अनादि होता है । जैसे कि प्रात्मा । प्रात्मा उत्पन्न द्रव्य नही है। अनादि अनन्त शाश्वत द्रव्य है। यह भी द्रव्य स्वरूप में है । फिर इसकी उत्पत्ति का कर्ता किसको मानेंगे ? क्या ईश्वर को ? कैसे ईश्वर प्रात्मा को उत्पन्न करता है तो आत्मा भी अनादि-अनन्त सिद्ध नहीं होगी, वह भी जड़ पदार्थवत् सादि सान्त सिद्ध होगा। तो.यह प्रत्यक्ष विरुद्ध सिद्ध होगा। मृत्यु के समय "जीव गया" जीव जा रहा है, जीव जाने वाला है ऐसा व्यवहार करते हैं । शरीर गया, या शरीर जा रहा है ऐसा व्यवहार कोई नहीं करते है। जीवात्मा इस देह को छोड़कर जाती है फिर नश्वर देह को जला देते हैं । देह उत्पन्न हुया था इसलिए नष्ट हो गया । आत्मा अनुत्पन्न थी इसलिए नष्ट नहीं हुई। अत: अनादि अनन्त का स्वरूप सही रहा। तो ही इसके आधार पर आगे स्वर्ग-नरक, लोक-परलोक, पूर्व जन्म-पुनर्जन्म की सिद्धि होगी और उपरोक्त बात न स्वीकार करें तो ये लोक-परलोकादि भी सब व्यर्थ सिद्ध हो जायेंगे । और व्यर्थ सिद्ध हो जायेंगे तो तीन लोक की अन्नत ब्रह्माण्ड की ईश्वर की सृष्टि प्रसिद्ध सिद्ध होगी।
दूसरी बात यह भी है कि आकाश द्रव्य को जिस तरह नित्य शाश्वत माना गया है। अतः उसकी उत्पत्ति नहीं मानी गई है तो आत्मा भी शाश्वत द्रव्य है, उसकी उत्पत्ति मानने का कोई कारण नहीं रहता है । नैयायिक आत्मा, आकाश, काल, दिशा, मनादि नित्य द्रव्यों को अनुत्पन्न मानते हैं। अब सोचिए कि यदि ये नित्य पदार्थ पहले से ही थे, अनादि नित्य हैं तो फिर ईश्वर ने बनाया क्या ? ईश्वर के पहले भी यदि सृष्टि थी तो फिर ईश्वर को सृष्टि का कर्ता कहें कैसे ? आद्य पुरुष कहें कैसे ? उसी तरह ईश्वर ने कुम्हार की तरह यह सृष्टि बनाई है ऐसा वेद में कह कर ईश्वर को सबसे बडा महान कुम्भकार-कुलाल के रूप में ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा है कि-"नमः कुम्भकारेभ्य कुलालेभ्यश्च" उस महान कुम्हार रूप एवं कुलालरूप (वणकर) ईश्वर को नमस्कार हो जिसने इस सारी सृष्टि की रचना की है।
कुम्हार घडे बनाता है। कैसे बनाता है ? मिट्टी-पानी लेकर मिश्रित करके पिण्ड बनाकर चाक के ऊपर दण्ड से घुमाकर घडे बनाता है। यह सर्व सिद्ध प्रत्यक्ष बात है कि कुम्हार मिट्टी आदि से घडे बनाता है। प्रश्न यह है कि कुम्हार घडे बनाता है कि मिट्टी-पानी बनाता है ? जी नहीं मिट्टी-पानी का बनाने वाला कर्ता कुम्हार नहीं है । वह तो सिर्फ घडे का कर्ता है। मिट्टी-पानी जो पहले से विद्यमान
कर्म की गति न्यारी