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इस्लाम धर्म में ईश्वर को इन मुख्य ७ शब्दों से समझा जाता है जो कि ईश्वर के गुण स्वरूप के द्योतक है १. हयाह (जीवन), २ इल्म (ज्ञान), ३. कद्र (शक्ति) ४. इरादा (इच्छा), ५. सम (श्रु ति) ६. बशर (दृष्टि) ७. कलाम (वाणी) । इस्लाम के अनुसार ईश्वर का कोई समानधर्मा समानान्तर नहीं है। ईश्वर को त्रिकालज्ञ मानते हैं। वही स्रष्टा है। कुरआन में कहा है कि ईश्वर की वाणी को पैगम्बर के द्वारा ही सुना जा सकता है । अतः पैगम्बर पुनः पुनः होते हैं । अल्लाह एक है। ईश्वर सर्व शक्तिमान, सब कुछ दृष्टा है इस्लाम में भी ईश्वर इच्छा ही बलवान कही गई है। वह अपनी मर्जी से सब कुछ कर सकता है । वही रहमतगार, बंदापरवर है। रोटी देने वाला है, सब कुछ देने वाला है। वह अदृश्य है । इस तरह कुरान धर्म ग्रन्थ है जो ईश्वर का स्वरूप प्रतिपादित करता है ।
ये जगत के प्रमुख धर्म व दर्शन हुए। इसी तरह और भी हैं। यहूदी धर्म, तामो धर्म, शिंतो धर्म, कन्फ्युशीयस धर्म, आदि अनेक हैं । इन सब में प्रायः सृष्टिकर्ता के रूप मैं ईश्वर का अस्तित्व स्वीकारा गया है । और और साम्यता अनेक प्रकार की मिलती है। ईश्वर को एक मालिक स्वामी के रूप में देखा गया है। उसकी इच्छा पर ही सारा प्राधार रखा गया है। प्रायः ईश्वरवादी मान्यता वाले विचार कई अंशों में परस्पर मिलते-जुलते हैं । बात का स्वरूप भिन्न होते हुए भी हेतु मिलता-जुलता है।
ईश्वरवाद एवं निरीश्वरवाद ईश्वरवाद से सिर्फ ईश्वर के अस्तित्व को ही मानना ऐसी बात नहीं है अपितु सृष्टि कर्ता के रूप में, जगत् कर्तृत्व के रूप में ईश्वर को स्वीकारना ईश्वरवादी का प्रमुख अर्थ है। इसलिए हिन्दु सिख, न्याय, वैशेषिक मतवादी, इस्लाम और ईसाई आदि प्रमुख धर्म ईश्वर को सृष्टि कर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं । ईश्वरवाद का ठीक विपरीत शब्द निरीश्वरवाद जब आता है तब इसका ऐसा विपरीत अर्थ नहीं है कि निरीश्वरवादी धर्म ईश्वर सत्ता को मानते ही नहीं है । ऐसी बात नहीं है। अर्थ का विचार करने से पता चलता है कि निरीश्वरवादी धर्म सिर्फ जगत् कर्ता, सृष्टि के स्रष्टा के रूप में ईश्वर को नहीं स्वीकारते। अतः वे निरीश्वरवादी-या अनीश्वरवादी कहलाए। परन्तु अनीश्वरवादी ने भी परमात्म स्वरूप को प्रात्मगुणैश्वर्यसम्पन्न पूर्ण शुद्ध-सर्वज्ञ वीतराग स्वरूप में मानकर उपासना अवश्य की है । उदाहरणार्थ जैन धर्म, मीमांसक, तथा सांख्य और योग दर्शन ये प्रमुख रूप से निरीश्वरवादी जरूर हैं अर्थात् सृष्टिकर्ता के रूप में, संसार के निर्माता या नियन्ता या संहारक के रूप में या इच्छा के केन्द्र के रूप में ईश्वर को नहीं स्वीकारते
कर्म की गति न्यारी