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वेद को अपौरुषेय सिद्ध किया गया है । जगत्कर्तृत्व वाद का मीमांसक खण्डन करते हैं । कर्म प्रधानता मानी गई है । उत्तर मीमांसा ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है । ब्रह्म का इसमें मुख्य वर्णन है । इसमें भी शांकरवेदान्त, रामानुज - वेदान्त, निम्बार्कवेदान्त, माध्व वेदान्त, वल्लभ वेदान्त आदि कई भेद हैं। थोड़े-बहुत अन्तर के साथ सबकी मान्यता में भेद हैं । रामानुज वेदान्त के अनुसार ईश्वर अनन्त, ज्ञानवान्, श्रानन्दरूप सद्गुणयुक्त, विश्वस्रष्टा, पालक और संहारक, चारों पुरुषार्थों का दाता, इच्छारूप धारण करने वाला है । ब्रह्म सगुण है । वह पुरुषोत्तम है । शांकरमतानुसार ईश्वर सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान है । ईश्वर जीवों का नियन्ता है । शैवमत- वैष्णव मत श्रादि कई मत हैं । कुछ भेद के साथ सभी सेश्वरवादी मान्यता रखते हैं ।
सिख धर्म में ईश्वर एक है । एक ईश्वर सबका पिता माना गया है । वही सब कारणों का कारण । ईश्वर एक ही है । सिख भी सृष्टिकर्ता के रूप में ईश्वर को मानते हैं । एक स्वयंभू, स्वयं अवलंबित ईश्वर ने ही यह संसार बनाया है । सब पर उसी का शासन है । ईश्वर अनंत अकाल और निरंकार है । ईश्वर सर्व
व्यापी है ।
पारसी धर्म में ईश्वर कल्पना की गई है । श्राहुरमज्दा आत्मा रूप है । वह परम मंगलकारी है । वे सारी पृथ्वी से ऊपर स्वर्ग में हैं । जरथुष्ट्र ने यह कल्पना जगत् को देते हुए ईश्वर का स्वरूप बताया है । सर्वोच्च सत्ता के लिए आहुरमज्दा के नाम का ईश्वर के लिए प्रयोग किया गया है । सर्वश्रेष्ठता बताई गई है । वही सर्वे - सर्वा सर्व रूप में है |
ईसाई धर्म ईसा मसीह से चला है। ईसा ने अनन्त दयालु के रूप में ईश्वर को बताया । वह मनुष्य पर अत्यधिक प्रेम करता है । अतः ईश्वर को प्रेम व दया का प्रतीक माना है । ईश्वर को ही सर्व सुख दाता के रूप में स्वीकारा है । वही परम पिता के रूप में है । परम सत्ता के रूप में है । ईश्वर को स्रष्टा है और उद्धारक भी माना है । ईश्वर एक ही स्रष्टा है और शेष सारी सृष्टि उनकी रचना है । वह देश - काल की सीमाओं से परे है । ईश्वर सतत कार्यरत है यह भी कहा है । ईश्वर की इच्छा ही संसार को चलाती है । ईश्वर स्वभाव से प्रेम स्वरूप दयालु है । वह सर्वोपरि सर्वस्वामी के रूप में हैं । अवतारवाद को ईसाई मानते जरूर है पर यह कहते हैं कि ईश्वर का पुत्र धरती पर आता है । उसे ईश्वर ने बनाया है, उसी ने भेजा है । ईसाई मत भी सृष्टि कर्तृत्ववादी ईश्वर के विचार में अन्य जगत्कर्तृत्ववादी पक्ष से काफी मिलता-जुलता है ।
कर्म की गति न्यारी
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