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यन में मृगापुत्र का जो वर्णन किया गया है वह रोम रोम खड़े करदे ऐसा आश्चयकारी है।
एक मां अपने १४ महिने के बच्चे को लेकर आई और कहा महाराज ! डॉक्टर ने कहा है कि यह मुश्किल से एक दिन भी नहीं जीएगा। सारे शरीर में कैंसर की गांठे भर गई हैं । मुंह से पानी भी नहीं उतरता है और पेशाब भी नहीं होता । मौत का इन्तजार करता हुमा वह सुन्दर-सुरूप बालक दिल में दया का मानों स्रोत बहा रहा हो । पर हाय निःसहाय निरुपाय बालक ने दूसरे दिन दम तोड़ दिया। यह कैसी विचित्रता है।
पशु-पक्षियों की सृष्टि में दृष्टिपात करने पर दुनिया भर की विचित्रता विविधता दिखाई देती है । मूक मन से प्राणियों की यह , विचित्रता संसार में देखते ही रहो......बस...... देखने के सिवाय और कोई उपाय ही नहीं हैं । बेचारे ऊंट का शरीर कैसा है ? अठारह ही अंग सभी टेहे मेढे । हाथी का शरीर इतना बड़ा भीमकाय है कि बिचारा भाग भी न सके । कुत्ते-बिल्ली की विचित्रता कुछ और ही है । खाने के हाथ भी नहीं है । बन्दर दो पैरों का खाने के लिए हाथ की तरह उपयोग भी कर लेता है । जलचर प्राणियों के न हाथ न पैर मछलियां अपने पंख से ही तैरती रहती है । पक्षी पंख से उड़ते हैं किसी के सींग है, तो किसी के एक भी सींग नहीं, तो किसी के बारह सींग पेड की डाली की तरह दिखाई देते हैं । पशु-पक्षीयों की प्राणी सृष्टि में कीड़े-मकोड़े तक देखने जाएं तो आश्चर्य का पार नहीं रहेगा। किसी के कान ही नहीं तो किसी के आंख ही नहीं है । कोई जीवन भर आंख के बिना ही काम चलाते हैं । इन्द्रियों के भी विकल बिचारे विकलेन्द्रिय जीव किसी कदर जीवन बिता रहे हैं । सभी जीव आहारादि की संज्ञा के पीछे जीवन बिता रहे हैं । मानों बहते पानी की तरह सभी का जीवन बीतता जा रहा है। फिर भी दुःख से मुक्ति कहां हैं ? अगले जन्म में वही परम्परा चलती रहती है। न तो भवचक्र का अन्त है और न ही जन्म-मरण के चक्र का अन्त है, और न ही संसार का अन्त । न ही भव भ्रमण का अन्त है । किसी के लिए तो हम कहते हैं- “वन्स मोर प्लीज” फिर से दुबारा गाइए । दुवारा बोलिए । आप तो दो घंटे से भी ज्यादा बोलते ही रहिए । और किसी के लिए गधा कहीं का बड बड करता ही रहता है । बैठता भी नहीं है । किसी का मधुर सुस्वर मीठा कंड पंसद आता है । मुग्ध कर लेता है। तो किसी का स्वर भैसासूर गर्दभराज का फटा हुआ गला सुनने को जी नहीं चाहता। कोई कोयल जैसा तो कोई कोए जैसा । कौए और कोयल में भी क्या अन्तर है ? समान दिखनेवाले भी आसमान-जमीन का अन्तर रखते हैं। कोयल अपने वर्ण से नहीं परन्तु
कर्म की गति न्यारी