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________________ कोई निरभिमानी विनीत है तो कोई महाभिमानी-घमण्डी है । कोई दयालु है तो कोई निर्दय क्रूर है । कोई चिरायु है तो कोई अल्पायु है। . कोई प्रभाव सम्पन्न है तो कोई प्रभावरहित है। कोई तेज पूज समान है तो कोई निस्तेज है । कोई यश प्रतिष्ठावाला है तो कोई अपयश-अपकीर्तिवाला है। . कोई सन्तानपरिवारवाला है तो कोई निःसंतान अकेला है। कोई प्रेम रखता है तो कोई वैर वैमनस्य रखता है । कोई धन लूटा रहा है तो कोई कौड़ी कौड़ी के लिए मुहताज है । कोई फूल सुगन्धी है तो कोई सुगन्ध रहित है। किसी के यहां खाने के लिए बहुत है पर अफसोस कि खानेवाला कोई नहीं है और किसी के यहां खानेवाले बहुत ज्यादा है तो खाने के लिए रोटी का टुकड़ा भी नहीं है। किसी के घर पहनने के लिए ढेर कपड़े हैं, एक साथ २-४ कपड़े पहनते हैं तो किसी के घर शरीर लज्जा ढांकने के लिए भी कपड़ा नहीं है । नंगे घूम रहे हैं । तो किसी के पास कफन के लिए भी नहीं है । यह संसार कि कैसी विचित्रता है । संसार की ऐसी सैकड़ों विषमता है । और सच कहो तो विषमताओं से ही भरा पड़ा संगर मानों विचित्रताओं विषमताओं तथा विविधताओं का ही बना हुआ है । इस संसार की चित्र विचित्र बातें भी कम नहीं हैं। किसी के एक भी संतान नहीं है तो किसी को एक साथ ३, ५, ६ सन्तानें होती हैं। कोई जुड़वा सिर वाले बालक हैं तो कोई जड़वां पेट वाले बालक हैं । किसी किसी में सारा शरीर अच्छा सुन्दर है परन्तु अंगो. पांग पूरे विकसे नहीं है। .. एक मां अपने ८ महिने के बालक को कपड़े में लपेटे हुए लाई। बालक इतना सुन्दर और मनमोहक था कि प्यार करने के लिए किसी का भी जी ललचा जाय । परन्तु कपड़ा हटाकर मां ने बालक को दिखाया तब देखते देखते आंखे फटने लगी अरे यह क्या ? बांया हाथ कोनी तक ही बना था और दाँया हाथ कलाई तक ही बना था। उसी तरह बांया पैर घुटने तक ही बना था और दाहिना पैर एडी तक भी नहीं बना था। यह कैसा आश्चर्य ? इतना सुन्दर बालक होते हुए भी यह विचित्र अवस्था ? विपाक सूत्र नामक ११वें अंगसूत्र में दुःख विपाक के पहले अध्य. ५२ कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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