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वेश्या के घर आई । बहाने से लौरी गाने बालक ! क्यों रोता है तेरे कहलाता है, देवर भी है, लगता है । तेरे पिता मेरे
विचित्र योग देखकर साध्वी विहार करके मथुरा नगरी में उस घर के प्रवेश द्वार में उस रोते हुए बालक को शांत करने के लगी । उस लौरी में साध्वी ने अपने संबंध सुनाए । हे मेरे तो कई संबंध है । तू मेरा भाई होता है, पुत्र भी भतीजा भी होता है, चाचा भी लगता है तथा पौत्र भी भाई भी होते हैं, पिता, दादा, पति, पुत्र और श्वसुर भी लगते हैं । हे बालक ! तू रो मत भाई तेरी मां मेरी भी मां लगती है, मेरे बाप की भी मां लगती है । मेरी भुजाई, पुत्रवधु, सास और शोक्य भी लगती है । इस तरह १८ प्रकार के सभी संबंध तेरे मेरे बीच लगते हैं । बनते हैं । तेरा बाप और मैं भाई-बहन हैं, और पति-पत्नी के संबंध से जुड़े । इतना ही नहीं हम छूटे तो भाई (पति) कुबेरदत्त यहां मथुरा में आकर अपनी मां के साथ ही देह संबंध करता हुआ पति रूप में रहने लगा और उससे एक पुत्र पैदा हुआ । हाय ! इस संसार की कैसी भयंकर विचित्रता ? अब क्या किया जाय ? किसको मुंह दिखाएं ? साध्वी जो कुछ बोल रही थी वह वेश्या ने और कुबेरदत्त दोनों ने सुना । सुनकर बहुत ही दुःख हुआ । विषय वासना के निमित्त कैसे भयंकर पाप कर्म हो जाते हैं । पश्चाताप से मन वैराग्यवासित हुआ । भाई ने भी दीक्षा ली । साधु बनकर कडी तपश्चर्या करके पाप धोने का संकल्प किया । वेश्या ने वेश्यावृत्ति छोड़ दी । सभी पापों को धोने के लिए पश्चाताप एवं प्रायश्चित की प्रवृत्ति में लग गए । कैसा विचित्र है यह संसार ? कैसी घटनाएं घटती है ? कैसा स्वरूप धारण कर लेती हैं ?
विचित्रता - विषमता श्रौर विविधता
इस तरह देखने से स्पष्ट दिखाई देगा कि समस्त संसार का स्वरूप सैंकड़ों प्रकार की विचित्रताओं, विविधतानों एवं विषमताओं से भरा पड़ा है | अतः यही सत्य कहा जाता है कि जहां इस प्रकार की विचित्रता, विषमता एवं विविधताएं भरी पड़ी है वही संसार है । उसी का नाम संसार है । संसार के बाहर मोक्ष में इनमें से एक भी नहीं है । चित्र = अर्थात् आश्चर्य - विचित्रता अर्थात् प्राश्चर्यकारी - विस्मयकारी स्वरूप | अतः संसार का स्वरूप जो भी कोई देखे उसे आश्चर्यकारी ही लगेगा । संसार में आश्चर्य नहीं होगा तो कहां होगा ? अतः समस्त आश्चर्यों का केन्द्र संसार ही है । आप देखेंगे कि
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कोई सुखी है तो कोई दुःखी है । कोई राजा है तो कोई रंक है ।
कर्म की गति न्यारी