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________________ बालक गिरा। सद्भाग्य वश बच गया। किसी सज्जन ने उठाकर आनाथाश्रम में दे दिया । पालन-पोषण हुआ। वह लड़की थी बड़ी हुई। अनाथाश्रमवासियों ने स्कूल में पढाई-और कालेज में भेजी। इधर माता-पिता ने जल्दी ही युवती की शादी कर दी। उसको एक लड़का हुआ, लड़के को स्कूल में भेजा.-बड़ा होकर उसी कालेज में बया, वहां उसी लड़की से प्रेम हुआ जो अपनी ही बहन थी। चूंकि एक ही मां के दोनों संतान थे। शादी भी हो गई और संसार चलने लगा । ऐसी घटनाएं तो आज अनेक होती है। अमेरिका में जहाँ स्कूल-कालेज में छात्राएं पढ़ती हैं वहां अपरिणित युवतियों में २०% से ३०% छात्राएं प्रति वर्ष माता बनती है । जिसमें १४ वर्ष से १८ वर्ष की आयु होती है और ५०% से ६०% जो माता नहीं बनती है व पहले से गर्भपात करा देती है । गर्भपात केन्द्रों पर स्कूल-कालेज की छात्राओं की कतारें अन्दर-अन्दर लगती हो यह कितनी शर्म की बात है । परन्तु वर्तमान युग के मानवी ने जहां अपने आप को बहुत ही ज्यादा बुद्धिशाली और सभ्य समझ लिया है वहा शर्म-धर्म कहां से रहें ? संसार का यह स्वरूप बड़ा ही डरावना है । हां ऐसा तो चलता ही रहता है । काल की बदलती हुई करवट में सब कुछ बदलता रहता है । एक जन्म में १८ प्रकार के सम्बन्ध मथुरा नगरी की एक नई नई तरूण वेश्या ने एक पुत्र-पुत्री के युगल को जन्म दिया । अपनी वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को चलाने हेतु से दोनों को चिन्ह रूप अंगूठी पहनाकर एक लकडे की पेटी में बन्द करके नदी के प्रवाह में बहा दिये । बच्चों के भाग्य के भरोसे बहती-तैरती पेटी सौर्यपुर शहर के दो व्यापारी मित्र जो नदी के किनारे बैठे थे उन्होंने पेटी ली। खोली । उसमें से एक लड़का और एक लडकी निकली। दोनों संतान के, अभाव वाले थे अतः दोनों ने एक-एक बांट लिया और शर्त यह रखी कि भविष्य में इनकी शादी करनी । वैसा ही हुआ। यौवनवय में शीघ्र ही दोनों की शादी करदी गई। कल के दोनों भाई-बहन आज पति-पत्नी बन गये। एक बार जुआ खेलते समय अंगूठी से दोनों को ख्याल आया और बाद में अपने पालकों से पूछकर वास्तविकता जानकर कि हम भाई-बहन है अतः संबंध छोड़ दिया। बहन ने पश्चाताप से दीक्षा ली और भाई व्यापारार्थ मथुरा गया । योगानुयोग कर्म संयोग वश कुबेरदत्ता वेश्या जो अपनी मां थी उसी के यहां ठहरा । उसी के साथ (मां के साथ) देह संबंध का व्यवहार चलने लगा । दैव योग वश एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । इधर बहन साध्वी को अवधिज्ञान होने से यह कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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