SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसे जीवों को मनुष्य गति मिली भी सही तो भी क्या फायदा हुआ ? कोई जीव माता के गर्भ में आकर ही चला जाता है । मर जाता है । कोई जन्म के पहले ही मर जाता है. तो कोई जन्म के बाद, तो कोई बड़े होने के बाद, तो कईयों को गर्भ में मां ही मरवा डालती है । आज गर्भपात का पाप भयंकर बढ़ता जा रहा है। जगह-जगह पर पंचेन्द्रिय मनुष्यों की कतल के ये उजले कतलखाने चल रहे हैं। सुधरे हुए सभ्य समाज का यह कलंक है महा पाप है। क्या गर्भस्थ शिशु बालक नहीं है ? क्या वह जीव नहीं है ? बेचारा ८४ लक्ष जीव योनियों में परिभ्रमण करके, आज कितने जन्मों की संचित पुण्याई के बल पर मनुष्य गति में आया, और मनुष्य गति में पैर रखते ही प्रवेश करते ही कोई काटकर वापिस भेज दे। सोचिए कितना भयंकर पाप है ? आप किसी कदर ऊपर चढ़ते हुए मनुष्य गति में आ गए इसलिए क्या दूसरे को मनुष्य गति में आने देना नहीं चाहते ? क्यों ? कोई आया है तो उसे प्रवेश भी नहीं करने देते और जन्म के पहले गर्भ में ही काटकर उसे पुनः ८४ के चक्कर में भेज देते हैं । गर्भपात का यह पाप बड़े सुहावने रूप में सभ्यता और बुद्धिशालीता की ढाल के नीचे चल रहा है। प्रति साल बड़े बड़े अंक की संख्या आती है । लाखों की संख्या में गर्भपात इस राज्य ने कराये हैं। उस राज्य ने कराये हैं । ये बड़े अक क्या सभ्य मानव की सभ्यता की पहचान है । या दुराचारीदुश्चरित्र दुष्ट मनुष्य की पहचान है। मानव सभ्य तभी कहा जाएगा जब वह पापों का आचरण न करता हुआ पापों का त्याग करेगा। निष्पाप पबित्र जीवन जीने लगेगा तभी । अन्यथा ऊपर से सभ्य दिखाई देनेवाला मानव आज बहुत ज्यादा आंतर वत्ति से कर दिखाई दे रहा है । वनता जा रहा है । जब मनुष्य अपने ही संतान को गर्भ में काटता जा रहा है, इतना नर पिशाच बनता रहा है तो समझ लीजिए यह पाप मनुष्य को कहां गिराएगा ? यह पाप करने वाला जीव खुद मनुष्य गति दुबारा कब पाएगा ? यह सोचने की बात है । पंचेन्द्रिय वध का यह पाप नरक गति के सिवाय कहां ले जाएगा ? नरक गति में आयुष्यकाल कितना लम्बा है ? फिर वहां दुःख-वेदना और पीड़ा कितनी सहन करनी है ? अच्छा, १ जन्म के बाद नरक गति से निकल तो जाएगा परन्तु तिर्यच गति में कितने भव करेगा ? पुनः नरक गति में, पुनः तिर्यच गति में इस तरह दुःख की दुर्गति में भटकता ही रहेगा । जहां केवल दुःख ही दुःख सहन करना पड़ेगा। श्री विपाक सूत्र देखिए जो ४५ आगमों में ११ अंग सूत्रों में ११वां अंग स्त्र है । कर्म के विपाक अर्थात् फल की बात की है । दुःख विपाक विभाग के १ नहीं दसो अध्ययन देख लीजिए। जिसमें मृगापुत्र का पहला अध्ययन है । किस किस गति में कितना भटकना पड़ा ? कितने भव किस गति में करने पड़े ? और एक नहीं सातों नरकों में जाना पड़ा। इतना ही नहीं एकेन्द्रिय कर्म की गति न्यारी ४३
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy