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में एक बार भी मनुष्य गति के दो-दो भव एक साथ नहीं किये हैं । यह तो संभावना की दृष्टि से ऊंची ऊंचो संख्या में बताई है। परन्तु प्राप्त करना यह जीव के खुद के पुण्य बल पर आधारित है । सात-आठ भत्रों की बात दूर रही परन्तु ८४ लक्ष जीव योनियों के संसार चक्र में भटकते हुए जीव को एक बार भी मनुष्य गति में जम प्राप्त करना भी बड़ा कठिन है। फिर दूसरी तीसरी बार की बात ही कहां रही ? अच्छा एक वार के लिए भी मनुष्य गति में जीव आतो गा लेकिन मनापुत्र के जैता जन्म मिला तो क्या फायदा ? मृगापुत्र का जन्म गति की दृष्टि से जहर मनुष्य गति में गिना जाएगा लोकिन वह भ व संख्या की गिनती में सिर्फ गिता जाएगा। इससे ज्यादा आने उसे लाभ क्या ? भव मनुष्य गति का लेकिन जीवन सारा मानों नरक गति का दु:भोगता हो ऐसा लगता है। उसी तरह आज हम आंखों के सामने देखते हैं कि कहलाते तो हैं मनुष्य परन्तु घोड़े-गो-थैल की तरह बैलगाड़ी खिचते हुए माल ढो रहे हैं । जो वन मनुष्य का और कार्य पशु का । सोचिए
पगति
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स्व
สองแสง
कर्म की गति न्यारी