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________________ सच्चो उपासना करे तो सदा के लिए चारों गति का अन्त करके ऊपर उठकर सीधा - मोक्ष में जाता है। यह सिद्धशिला कही जाती है । चौदह राजलोक के अग्र भाग पर ऐसी ४५ लाख योजन विस्तार वाली लम्बी सिद्ध शिला है। जहां अनन्त सिद्ध भगवंतो का वास है । यही मोक्ष कहलाता है । यहां गया हुआ जीव पुनः संसार में नहीं लौटता । जीव मोक्ष में गया, मुक्त हुआ, सिद्ध हुआ अर्थात् सर्व कर्म से सदा के लिए मुक्त हुआ। सदा के लिए जन्म-मरण के संसार चक्र से छुटकारा पाया । peegelkaamerar चार गति के परिभ्रमण से सदा के लिए छुटकारा पाया ।, शरीर के संयोग से सदा के लिए छूटकारा पाया । यह मोक्ष ऐसा है। अतः इसी क्रम से चावल का स्वस्तिक (सायीया) अक्षत पूजा में बनाते है । द्रव्य सहायक साधन है। भाव प्रेरक प्रबल कारण है। भावना-धारणा बनती है । चारों गति में जीवों का जीवन चारों गति में संसारस्था संसारी जीवों का निवास है । मनुष्य गति में मनुष्य स्त्री-पुरुष रहते हैं । मनुष्य गति में जन्म होता है । जीव बाल्यावस्था में होता है। आत्मा जो अक्षय स्थिति स्वभाव वाला है उसकी आयु नहीं होती। लेकिन आत्मा जब देह धारण करती है तो वह देह कहां तक ? कितने काल तक टिकाये रखना है ? सम्भाले रखना है ? वह काल अवधि आयुष्य है। जन्म से लेकर मृत्यु तक की काल अवधि आयुष्य काल है । उतना ही समय जीव को जन्म में रहना है। उसके बाद वह भव पूरा करके वह देह छोड़कर दूसरे भव में जाना पड़ता है। मनुष्य जन्म यद्यपि दुर्लभ है फिर भी आत्मा यदि तथा प्रकार की साधना करे तो मनुष्य जन्म भी तुरन्त दूसरी बार भी मिल सकता है । तीसरी बार भी मिलता है । इस तरह "सत्त-अट्ठ भवा का पाठ हैं। सात से आठ भव मनुष्य गति में जीव लगातार कर सकता है । लेकिन यह कब सम्भव है ? कितनी ऊंची पुण्याई के बाद सम्भव है ? भगवान महावीर ने अपने २७ भवों की भव परम्परा में २ बार मनु य भव लगातार साथ में किए हैं । एक बार तो ५वां तथा छट्ठा एक के ऊपर दूसरा दोनों भव मनुष्य गति में लगातार किये हैं। उसी तरह २२ वां तथा २३ वां भव पुन: मनुष्य गति में लगातार मनुष्य गति के किये हैं । भगवान पार्श्वनाथ ने १० भवों की भव परम्परा कर्म की गति न्यारी ४५
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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