________________
भव वाले के जन्म छोटे-छोटे होंगे । उदाहरणार्थ तुम इतने भयंकर पाप कर्म कर रहे हो कि यहां से ७वीं नरक में जाकर ३३ सागरोपम का उत्कृष्ट आयुष्य पाओगे। १ सागरोपम=असंख्य वर्ष होते हैं, ऐसे ३३ सागरोपम का काल तो सिर्फ १ भव में बीतेगा। जबकि बड़ा भाई कृमि-कीट-पतंग की योनि में जाकर अल्पायु के छोटेछोटे असंख्य भव कर लेगा। इस तरह तुम्हारे भयंकर पापों के कारण तुम जो ७ भव बड़े-बड़े लम्बे आयुष्य वाले करोगे इसके पहले तो असंख्य भव बड़े भाई के पूरे भी हो जाएंगे और वह मोक्ष में भी चला जाएगा और तुम संसार में ही भटकते रहोगे । अन्त में सातवें भव में भान आएगा और सभी पाप कर्मों का क्षय करोगे तब मोक्ष में जानोगे।
सर्वज्ञ केवली प्रभु का यह गणित कितना गूढ़ और रहस्य से भरा हुआ है सोचिए । हमने तो अपनी अल्प बुद्धि से विचार किया था। इसीलिए अल्पज्ञ को सर्वज्ञ बनने की साधना करनी चाहिए। अपूर्ण को पूर्ण बनने की साधना करनी चाहिए । इसी तरह अज्ञानी को ज्ञानी, रागी-दोषी को वीतरागी और संसारी को मुक्त, तथा पापी को निष्पाप, सकर्मी को कर्म रहित बनने की साधना करनी चाहिए । इसी उद्देश्य से धर्माराधना करनी चाहिए। साध्य भी यही और भाव भी यही रखें। साध्य के अनुसार एवं अनुरूप साधना होनी चाहिए । तो ही इष्ट फल प्राप्त होता है।
संसार मुक्ति का साध्य
चार गति सूचक स्वस्तिक के मंगल चिन्ह से हमें बहुत कुछ सीखना है । इसीलिए भावना के आधार पर जोड़कर एक द्रव्य निमित्त बनाकर द्रव्य पूजा मेंअष्टप्रकारी पूजा में यह अक्षत पूजा में एक प्रकार के रूप में रखा गया है । हमें पहले चार गति का सूचक स्वस्तिक 卐बनाना चाहिए। द्रव्य भाव में प्रबल सहायक निमित्त बनता है । यह भाव रखें कि हे प्रभु ! इस चार गति के संसार में मैं खूब भटक चुका हुँ । चार गति में अनन्त जन्म-मरण करते हुए अनन्त भव कर चुका हुँ । यही संसार चक्र है । इससे मुक्त होने के लिए आज इस अन्तिम मनुष्य गति में आकर आपके चरणों में आया हुँ, आपकी शरण में आया हैं। ऊपर की जो तीन (ढगली) बिन्दीयां बनाते हैं वह दर्शन-ज्ञान-चारित्र की है । यही आत्म धर्म है। और यही मोक्ष का मार्ग है । तत्वार्थाधिगम सूत्र में कहा है कि-"सम्यग् दर्शन-ज्ञानचारिबारिण मोक्षमार्गः” । अर्थात् सम्यग् =सही सच्चा दर्शन, ज्ञान और चारित्रादि मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग है, सही धर्म है। अतः चार गति के संसार चक्र से छूटने के लिए अब जीव मनुष्य गति में पाकर इन दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि धर्म (मार्ग) की
कर्म की गति न्यारी