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की जाति में पृथ्वी-पानी-अग्नि-वायु-वनस्पतिकाय में भी कितना नीचे गिरना पड़ा कितने जन्म-मरण करने पड़े ? कितने दुःख सहन करने पड़े ? एक भव के पाप कर्मों को भुगतने के लिए कितने भवों तक सजा भुगतनी पड़ी ? फिर भी छूटा कि नहीं ? पाप करना तो आसान है । परन्तु किये हुए पापों की सजा भुगतते समय नाक में दम आ जाता है । अतः इस चार गति के गतिचक्र से आत्मा को छुडाने का लक्ष्य रखना चाहिए । पाप तो भूतकाल में अनन्त किये, अनन्त बार किये । लेकिन पाप से छूटने के लिए संवर-निर्जरात्मक धर्म नहीं किया है । वह यदि करने लगे तो इस भव चक्र से छूट सकेंगे । अन्यथा सम्भव नहीं है । अब यह जन्म मिला है। जो मनुष्य गति का मनुष्य भव हैं । वीतराग जिनेश्वर का शासन-धर्म मिला है। समझने का यही सही समय है । पारों से बचने का यही सही समय है । इस जन्म में पापों से बच जाएंगे । इस गति चक्र से छूटने का लक्ष्य एक बार बन जाय फिर तो पापों से बचना भी आसान है । पापों से बचना है । संसार से छूटना है। इस गति चक्र की भवाटवी से बाहर निकलना है तभी मोक्ष सुलभ है ।
इस तरह संसार चक्र का स्वरूप देखा, और उसमें आत्मा का परिभ्रमण देखा । यह परिभ्रमण देखा और वह किसी का नहीं अपितु मेरा खुद का है । ८४ के चक्कर में चारों गति में मैंने खुद ने इतने अनन्त काल से. अनन्त भव किये हैं । अब इन अनन्त भवों का ही अन्त लाना है। सदा के लिए अन्त करना है । अतः पूर्ण पुरुषार्थ करें। यथार्थ धर्मोपासना करें । संसार में सभी जीवों के संसार का अन्त हों और सभी परम पद मुक्ति धाम को प्राप्त करें इसी शुभेच्छा के साथ सर्व मंगल......।
.....शुभं भवतु 卐... -
कर्म की गति न्यारी