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________________ धारण करता है । ४५ आगमों में ११वें अंग सूत्र विपाकसूत्रों में बताया गया है कि मनुष्य पर्याय में किए हुए भयंकर पापकर्मों के विपाक अर्थात् फल को भुगतने के लिए जीव नरक गति और वहां से भी तिर्यच गति के भव धारण करता है। इतना ही नहीं भयंकर पापों के आधीन जीव को विकलेन्द्रिय में पुन: कीड़े-मकोड़े बनना पड़ता है । तथा इससे भी ज्यादा नीचे एकेन्द्रिय पर्याय में पुन: जाकर पेड़-पौधे के जन्म धारण करता है । इस तरह एक जन्म में किए हुए पापों की सजा भुगतता हुआ जीव असंख्य वर्षों का समय निकाल देता है। उदाहरणार्थ मृगापुत्र का जीव, उज्झीतक कुमार का जीव ब्रह्मदत्त का जीव, अंजुसुता का जीव आदि कई दृष्टान्त विपाकसूत्र के दुःख विपाक विभाग में दिये हैं। कितनी बार नरक गति में जीव जाता है । कितने जन्म तिर्यच गति में पशु-पक्षी के बिताता है। और कितना नीचे गिरता है । यह है जीव के चढ़ाव-उतार की स्थिति । । ★ / - TT TTT - TTTTTT TTTTT AM /17-- TIM THIS FFEEY/CFLGAD . MLAN AKAKATTA I JLA - .. . . . . . NAL Pyyy ' ' .NALLL . Ty ' L ' L ' LL CAKAR . LILA LLULL L - - कर्म की गति न्यारी ३३
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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