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________________ नरक गति के नारकी जीव । चारों गति में ये चारों प्रकार के जीव पंचेन्द्रिय पर्याय अलेकहलाते हैं । अब चउरिन्द्रिय पर्याय से ऊपर उठकर जीव पंचेन्द्रिय पर्याय में सर्व प्रथम तिर्यच गति के पशु-पक्षी के रूप में आकर जन्म लेता है । पशु-पक्षी भी तीन प्रकार में गिने जाते हैं । (१) जलचर, (२) स्थलचर, (३) खेचर । पहले जीव जलचर में जाकर मछली, मत्स्य, मगरमच्छ, क छूआ आदि बनता है । समुद्र में मछलियों की जातियां, प्राकृति भेदादि से लाखों प्रकार की है । तथा सख्या में समुद्री मछलियों की गिनती असम्भव है । उतने प्रकारों में जीव जाय और सभी जाति में जन्म करता हुआ जलचर में से स्थलचर में आने में असंख्य वर्षों का संख्यात जन्मों का काल बीत जाता है। स्थलचर पर्याय में हाथी, घोड़ा, बैल, ऊंट, गधा, कुत्ता, बिल्ली, भैस, भेड़-बकरी, शेर, सिंह, चीत्ता, भालू, रीछ, बन्दर, सांप, चहा, छिपकली आदि में असंख्य वर्षों का काल यहा भी बिता देता है। खेचर=ख अर्थात् =आकाश । अकाश में उड़ने वाला पक्षी कहलाता है । इन जन्मों में--कौवा, तोता, मेना, कबूतर, चिड़िया आदि के सेकंडो जन्म धारण करता हैं । इस तिर्यन्च गति में पंचेन्द्रिय पशु-पक्षी में भी गिरता-चढ़ता हुआ असंख्य जन्म-मरण धारण कर सकता है । इस तरह असंख्य वर्षों का काल बिता देता है। शेर-चीते आदि के कई हिंसक जन्म धारण कर अन्य पंचेन्द्रिय पशु-पशियों को मारने का पाप करके जीव नरक गति में जाता है । कितना अधःपतन हुआ ? कितना जीव नीचे गिरा ? वहां नरक गति में सागरोपमों अर्थात् असंख्य-अगणित वर्षों का काल बिता देता है। यहां से पुनः तिर्यच गति में वापिस पशु बनता है । पुनः नरक गति में गिरता है । पुनः तिर्यच में आता है, पुन: गिरता हैं । इस तिर्यच से नरक और नरक से पुनः तिर्यच में जीव कितने जन्म बिता देता है । कितना लम्बा काल पसार कर देता है । आप चित्र में देखेंगे तो पता चलेगा कि यहां से जीव वापिस नीचे गिरता हुआ चउरिन्द्रिय, तेइन्द्रिय, दोइन्द्रिय और यहां तक की पुनः एकेन्द्रिय पर्याय में पृथ्वी-पानी, अग्नि-वायु-वनस्पतिकाय के भव करता है। फिर उसी तरह वापिस ऊपर चढ़ने की यात्रा शुरू करता है । फिर क्रमशः एक-एक इन्द्रियों में जन्म धारण करता हुआ ऊपर आता हैं। यहां तक कि पशुपक्षी में से ऊपर उठकर मनुष्य गति में मनुष्य बन जाता है। चाहे स्त्री बने या पुरुष आखिर दोनों ही है तो मनुष्य गति के जीव । मनुष्य गति में स्त्री-पुरुष के सिवाय तीसरी कोई पर्याय नहीं है। मनुष्य बनकर भी संसार के सैकड़ों पाप करता है । पुनः अध:पतन । नरक में जाता है। वहां से वापिस घोड़े-गधे के जन्म ३२ कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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