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________________ जीवों का वर्गीकरण करते हुए सर्व प्रथम मोक्ष में गए हुए मुक्त जीव बताए हैं जिनको सिद्ध कहते हैं। दूसरे संसारी जो मोक्ष में नहीं गए हैं संसार चक्र की चारों गतियों में ८४ लाख जीव योनियों में जो सतत परिभ्रमण कर रहे हैं । संसारी त्रस और स्थावर के भेद से दो प्रकार के हैं । दुःख से बचने के लिए जो गति आदि प्रयत्न कर सके वह हलन-चलन करनेवाला त्रस जीव कहलाता है । इससे विपरीत जो स्थिर स्वभावी है वह स्थावर जीव कहलाता है। दुःख से बचने के लिए स्वयं गति आदि प्रयत्न कर नहीं सकता व बच नहीं सकता वह स्थावर है । ये स्थावर जीव पांच प्रकार के है । पृथ्वीकाय के, अपकाय के, अग्निकाय (तेउकाय) के, वायुकाय के, और वनस्पतिकाय के जीव स्थावर है। ये सभी स्थावर जीव एकेन्द्रिय कहलाते हैं । पहली सिर्फ स्पर्शेन्द्रिय ही एक इन्द्रिय हैं। इनमें वनस्पतिकाय जीव दो प्रकार के हैं । (१) साधारण और दूसरे प्रत्येक । प्रत्येक जीव एक शरीर में एक ही रहते हैं । प्रति+एक प्रत्येक, प्रति-शरीर में-एक जीव्र वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाता है । उदाहरणार्थ-आम-केला आदि । साधारण वनस्पतिकाय वाले जीव की व्याख्या इस तरह दी- 'जेसिमरणंताण तण एगा - साहारणा तेउ।" जहां अनन्त जीवों को एक साथ इकट्ठा रहना पड़ता हो और रहने के लिए शरीर एक ही हो वे साधारण जीव कहलाते हैं । साधारण अर्थात् Common सभी के लिए समान-एक सरीखा हो वह साधारण है । अनन्त जीवों के लिए संयुक्त रूप से रहने के लिए एक शरीर है । अतः वह अनन्त जीवों के लिए एक सरीखा है, समान रूप से है । अतः साधारण कहा जाता है । उसे शरीर आहार जो भी मिले-जितना भी मिले वह भी अनन्त जीवों के लिए समान रूप से उपयोग में लेना है । उसी तरह श्वोतोच्छवास भी सभी को एकसाथ लेना छोड़ना है कि सभी के बीच में शरीर एक ही है । सुख-दुःख की संवेदना अनन्त जीवों को एक साथ ही अनुभव करनी है चूंकि शरीर एक ही है । एवं जन्म-मरण भी अनन्त जीवों का एक साथ ही होता है। चूकि एक ही शरीर है । अतः ये साधारण कक्षा के वनस्पति कायिक जीव कहलाते हैं । जीवों की संख्या अनन्त होने से इन्हें ही अनन्तकाय भी नाम दिया है । ये जमीन में अधिकांश उत्पन्न होते हैं अतः लोक व्यवहार में इन्हें जमीकन्द (जमीनकंद) के नाम से भी कहते हैं। बादर अर्थात् स्थूल स्वरूप में ये आलु, प्याज, लहसून, अदरक, शकरकन्द, गाजर, मूला, थेग की भाजी, पालक की भाजी आदि ३२ मुख्य प्रकारों से पहचानते हैं । अतः इनके भक्षण से सेवन से अनन्त जीवों की हिंसा होती है अतः शास्त्रकारों ने भक्षण निषेध किया है। बारिश में दिवारों पर लगी हुई काई शैवाल, हरे वर्ण की लील एवं पांच वर्षों की फूग ये भी अनन्तकाय है । सूक्ष्मतम जीव विज्ञान की वनस्पति-शास्त्र की यह बात है । अब रही बात सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय की । इसी का दूसरा नाम निगोद है । सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय कर्म की गति न्यारी ।
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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