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भर गया सा प्रतीत होता है । यद्यपि वे टकरा कर फूट जाते है । टूट जाते है । हवा होती है वह वायु मण्डल में मिल जाती है और अस्तित्व समाप्त हो जाता है । यह तो उदाहरण दिया है समझने के लिए । ठीक इसी तरह शास्त्रों में सर्वज्ञोपदिष्ट निगोद के गोले का स्वरूप बताया गया है। - बुलबुले के जैसे गोल-गोल गोले समस्त चौदह राजलोक के सम्पूर्ण आकाशमें भरे पड़े हैं । इतना लम्बा-चौड़ा असंख्य योजन विस्तार वाला आकाश, और इस आकाश में मानों काजल की डिब्बी में काजल दबा-दबाकर भरी हो वैसे ही ये गोले भरे हुए हैं। एक सूई जा सके इतनी जगह भी दो गोले के बीच में खाली नहीं है। इतने ज्यादा गोले हैं। इन गोलों की संख्या सर्वज्ञ ने असंख्य बताई है। इसी को निगोद की संज्ञा दी गई है । अतः इन्हें निगोद के गोले कहा जाता है। इन गोलों में प्रत्येक गोले में अनन्त जीवों का निवास बताया है । एक-एक गोले में अनन्त-अनन्त. जीव रहते हैं । ऐसे असंख्य गोले और एक गोले में जीवों की संख्या अनन्त-अनन्त है अतः सोचिए कि समस्त निगोद के गोलों में जीवों की संख्या कितनी हुई ? असंख्य का अनन्त-अनन्त से गुणाकार करिए । असंख्य X अनन्तानन्त=अनन्त अनन्त । यहां इन गोलों में जीव द्रव्य अपने मूलभूत स्वरूप में अपना अस्तित्व लिए हुए पडा है ।
निगोद में जीवों का जीवन जीवाजीवाभिगमसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, भगवतीसूत्र, जीवविचार प्रकरण एवं निगोदछत्रीशी आदि निगोद जीव विषयक वर्णन करने वाले प्रमाणभूत ग्रंथ है । काफी विस्तार से इसकी सूक्ष्मतम चर्चा-विचारणा की गई हैं। यहां हम संक्षेप में देखें
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जीव
मुक्त जीव
' संसारी जीव
सजीव
स्थावर जीव
___ सजीव
स्थावर जीव पृथ्वीकाय अपकाय अग्निकाय · वायुकाय वनस्पतिकाय
____ साधारण प्रत्येक
साधारण
प्रत्येक
सूक्ष्म (निगोद)
बादर
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कर्म की गति न्यारी