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________________ कहलाते हैं । दूसरे उदाहरण से समझें तो धागे में हल्की सी गांठ जो शिथिल ही लगाई गई है वह आसानी से खुल जाती है । या हमारे कपड़े पर पड़ी हुई धूलकण जो झट'कने मात्र से ही दूर होजाती है । वैसा कर्मबंध स्पर्श मात्र कहलाता है । कार्मण वर्गणा के कर्म योग्य पुद्गल परमाणु के रजकण जो प्रात्मा के साथ स्पर्शमात्र शिथिल बंध से चिपके हैं वे आसानी से पश्चाताप मात्र से छूट जाते हैं । जैसे प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को ध्यान में विचारधारा बिगड़ने से जो कर्मबन्ध हुआ था वह शिथिल स्पर्श मात्र ही था अतः २ घड़ी में तो कर्मभय भी हो गया और कर्म मुक्त होगए केवलज्ञान भी पागए। (२) बद्ध (गाढ) कर्म बंध-यह पहले स्पर्श मात्र शिथिल बंध की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा गाढ है । ज्यादा मजबूत है । पेक बण्डल में से सूईयां जो बन्द बण्डल में या बक्स में टाइट बांधी गई थी अतः उन्हें छूटी करने में थोड़ी सी कठिनाई आ सकती है । थोड़ा सा प्रयत्न ज्यादा करना पड़ता है। जैसे धागे में गाठ खिंचकर लगाई गई हो तो खोलने में कठिनाई होती है। वैसे ही आत्मा के साथ कर्म का बन्ध जो गाढमजबूत हुआ हो वह बद्ध कक्षा का बन्ध है गाढ है । केवल पश्चाताप मात्र से वे कर्म नहीं छूट सकते । उनके क्षय के लिए प्रायश्चित लेना पड़ता है । उदाहरण के लिए अइमुतामुनि को प्रायश्चित करते हुए कर्मों का क्षय हो गया। इस दूसरे प्रकार में कुछ । शिथिल अंश भी होता है और कुछ गाढ बन्ध होता है । यह बद्ध बन्ध कहलाता है । (३) निधत्त कर्म बंध-सूइयां कई वर्षों से चिपकी हुई पड़ी है जिसमें पानी • या हवामान के कारण जंग लग गया हो जंग से एक दूसरी के साथ ज्यादा चिपक गई हो वे आसानी से अलग नहीं पड़ती। दूसरे साधन की मदद लेनी पड़ती है या दूसरा उदाहरण है रेशमी धागे में लगाई गई पक्की गांठ जो बहुत जोर से कस कर बांधी गई हो वह अब खोलना बहुत ही मुश्किल है । वैसे ही आत्मा के साथ कर्म का बन्ध तीव्र कषाय की वृत्ति में बहुत ही ज्यादा मजबूत बन्ध जाता है। जो आसानी से नहीं छूटते । यह निधत्त प्रकार का बंध पहले दोनों प्रकार के बंध से दुगुना मजबूत है । इस प्रकार के कर्मों का क्षय तप-तपश्चर्या आदि धर्मानुष्ठान विशेष से बडी कठिनाई से क्षय होता है। उदाहरणार्थ अर्जुनमाली का दृष्टांत लीजिए। (४) निकाचित कर्म बन्ध-सुईया सभी जंग या गरमी के कारण पिचल कर लोखन की प्लेट के जैसे एकाकार एक रस हो गई हो अब सूई का स्वतन्त्र आकार भी दिखाई न देता हो । अब चाहे उस प्लेट को हथोडे से पीटो या अग्नि में जलाकर गरम करो तो भी छूटी नहीं पडती है । वैसे ही रेशम के धागे पर पक्की मजबूत गांठ लगाई गई हो और ऊपर से मोम लगा दिया जाय अब खुलना सम्भव नहीं है । धागा टूट जाय पर गांठ न खुले, वैसे ही लोखन की प्लेट के टुकडे हो जाय पर पुनः सुई अलग नहीं पड़ती वैसे ही इस प्रकार का कर्म बन्ध किसी भी तपादि कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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