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कलाकार
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बंध की पहल
AGROGRArea
गायनी
SHRESS
वैसे ही रोटी बनाने के लिए आटे में पानी डालकर मिश्रण करके फिर मसलकर पिंड बनाया जाता है । इसमें भी पानी के कम-ज्यादा प्रमाण पर अाधार रहता है। उसी तरह आत्मा के साथ कर्म बन्ध में भी कपायादि की मात्रा आधारभूत प्रमाण है । सीमेंट-रेती में, और आटे में मिश्रग पानी के आधार पर होता है । वैसे ही आत्मा के साथ जड़ कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का मिश्रण केपाय के आधार पर होता है । कषाय ही यहां पर रस का काम करता है । यही कर्म बंत्र की पद्धति में माध्यम है । जिस तरह पानी कम-ज्यादा हो तो आटे के तथा सीमेंट के मिश्रण में या बन्धन में फरक पड़ता है उसी तरह कषायों में तीव्रता या मन्दता आदि के कारण कर्म के बन्ध में भी शैथिल्य या दृढ़ता आती है । अतः कर्म बन्ध की पद्धति चार प्रकार की है. जो (उपरोक्त चित्र में बताई गई है)।
(१) स्पृट (२) बद्ध (३) निधत्त (४) निकाचित ।
(१) स्पष्ट (शिथिल) कर्म बन्ध- चित्र में दिखाए अनुसार एक युवक टेबल पर लोहे की बड़ी सुइयों से खेल रहा है। सभी सुइयां एक मुट्ठी में पकड़ कर टेबल पर गिरा दी है। वे सूइयां एक दूसरी पर गिरी है । ढेर सी हो गई है । युवक अंगुली से एक-एक को अलग कर रहा है । केवल स्पर्श ही है अतः युवक को सुइया अलग करने में विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता है । ठीक इसी तरह सामान्य अल्प मात्र कषाय आदि कारण से बंधे कर्म जो आत्मा के साथ स्पर्शमात्र संबंध से ही चिपक कर रहे हैं उन्हें सामान्य पश्चाताप मात्र से ही दूर किये जा सकते हैं । वे स्पर्श कर्म बंध
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कर्म की गति न्यारी