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________________ -auch ali vica से आई हई कार्मण वर्गणा आत्म प्रदेशों के साथ मिलकर एक रस हो जाते है । इसे क्षीर-नीरवत् बन्ध कहते है। आत्मा+कर्म का एक-रसात्मक मिश्रण यह बंध कहलाता है। दूसरा एक दृष्टान्त है । सिगड़ी के जलते • अंगारे पर एक लोहे का गोला Giusai auni Tecuedical रखा जाय । देखते ही देखते थोड़ी देर में वह लाल बन जाएगा। अग्नि की ज्वाला में तपकर लाल बन गया। गोला ciwsai लोहे का है। देखने में बिल्कुल काला है । परन्तु अग्नि के संयोग में लाल बन गया । सोचने की बात यह है कि लोहे के मजबूत गोले में जहां सूई नहीं प्रवेश कर सकती, पानी भी प्रवेश नहीं कर सकता । तनिक भी जगह नहीं है फिर भी अग्नि कैसे प्रवेश कर गई ? अग्नि गोले के प्रार-पार चली गई। सारे गोले का काला रंग बदल दिया। लाल कर दिया । मानों अग्नि और गोला एक रस हो गए है। अग्निमय गोता हो गया। ठीक इसी तरह आत्मा भी एक गोले जैसी है । असंख्य प्रदेशी चेतन द्रव्य है । बाहर से आई हुई कार्मण वर्गगा आश्रव मार्ग से आकर आत्म प्रदेशों में चिपक गई है । आत्म प्रदेशों की संख्या से तो अनन्तगुनी ज्यादा कार्मण वर्गगाएं ___ आकर आत्मा के साथ मिलकर एकरस बन गई है। SHeafनि मेयछ अतः तप्तअयःपिण्ड-तपे हुए लोहे के गोले की तरह आत्मा+कर्म पुद्गलों का मिश्रण ही बंध तत्त्व कहलाता है। लोहे में अग्नि की तरह आत्मा में कार्मण वर्गणाओं का प्रवेश होता है। वे मिलकर तद्रूप तन्मय बन जाती है। अब प्रात्मा कर्म में भेद नहीं दिखाई देता । ऐसा एक रसात्मक मिश्रण हो जाता है। यह कर्म बन्ध कहलाता है । अब आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में नहीं दिखाई देती। कर्म संयोग से मलीन, कर्ममय दिखाई देती है। आत्म गुणों को ढकने वाले कर्म समझने के लिए एक चित्र पास में दिया है । ८ प्रकार के भगोने है । जिनमें 19 . P १४२ कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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