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________________ वह यह कहता है कि आपके पिता का स्वर्गवास हो ही नहीं सकता ? उसके शब्दों का भावार्थ क्या है ? हां यदि आपने नरकवास या तिर्यंचवास लिखा होता और उस ने प्रत्युत्तर में बहुत खराब हुआ" बुरा हुआ लिखा हो तो फिर भी उचित था । लेकिन आपके स्वर्गवास (स्वर्ग में वास) लिखने के बाद भी वह लिखता है कि "बहुत बुरा हुआ......... खराब हुआ"। इसका भावार्थ क्या ? ___ मैने भावार्थ का स्पष्ट अर्थ जानने के लिए एक बार एक प्रसंग पर एक सज्जन से पूछा कि-इसका क्या तात्पर्य है ? तो उसने जवाब में कहा-अजी महाराज वह तो आज-कल का लड़का है। बिवारा अपने बार के बारे में वह क्या जानता है ? मैं और उसका बाप पक्के मित्र थे। हम साथ घूमतेजाते-पाते-मिलते थे। उसके बाप ने क्या किया है ? कैसा काम किया है ? कहां क्या किया है ? किसके साथ क्या किया है ? आदि सब मैं अच्छी तरह जानता हूं। अाज यह लड़का स्वर्गवास हुप्रा लिखता है तो पढ़कर मैं भी आश्चर्य चकित रह गया कि ऐसे आदमी का स्वर्ग में वास कैसे हो गया ? उसको स्वर्ग में जगह मिल ही नहीं सकती। कैसे स्वर्ग में चला गया ? मुझे तो विश्वास ही नहीं होता। इसलिए मैंने प्रत्युत्तर में पत्र लिखते हुए लिखा कि-"तुम्हारे पिताजी का स्र्वगवास हुआ है यह जानकर बडा भारी दुःख हुमा है, बहुत खराब हुआ है। बहुत ही बूरा हुआ।" उनका तो नरक में ही वास होना चाहिए था स्वर्गवास कहां से हो गया ? यह तात्पर्य और भावार्थ सुनकर मैं भी आश्चर्यचकित रह गया। यह लो आपने जिसको मित्र सगे-सम्बन्धी रिश्तेदार माना है वे ही आपको स्पष्ट जवाब दे देते हैं। किसी को भी आपके द्वारा लिखा हुआ स्वर्गवास शब्द मान्य नहीं है, पसंद नहीं है। इस तरह सभी के द्वारा स्वर्गवास ही लिखा जाय और सभी का स्वर्ग में ही वास होता हो तो तो फिर नरक-प्रादि गतियां खाली ही पड़ी रहती ! लेकिन नहीं वहां की संख्या भी बडी लम्बी चौड़ी है। चार गति में जीवों की संख्या देव गति-प्रसंख्य जीव संख्यात जीव-मनुष्य गति अनन्त जीव - तियं च गति नरक गति-असंख्य जीव संख्या संख्यात प्रसंख्यात अनन्त कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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