SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ M SONRVDONaniwww ANDoodkasex है । (१) इन्द्रियाश्रव, २) कषायाश्रव, (३) अव्रताधव, (४) योगाश्रव और (५) क्रियाश्रव ये मुर य प च द्वार है । इन प्रवृत्तियों में रहा हुआ जीव कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को अपने में आने देता है । यह क्रिया जीव की ही है। उदाहरणार्थ सोचिए चारों तरफ पहाड़ियों से घिरे सरोवर में जैसे पहाड़ों से बहते झरने के माध्यम से पानी पाता है । नदी के माध्यम से पानी आता है और बीच का सरोवर भरता जाता है। दूसरा उदाहरण है--जैसे सरोवर के पानी के बीच तैरती हुई एक नौका में नीचे छिद्र पड़ गया । नौका काष्ठ-लकड़े की है। लकड़े का पानी कर्म की गति न्यारी १३७
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy