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________________ पर नैरने का स्वभाव है। परन्तु नौका में छिद्र पड़ने से पानी नौका में आता जा रहा है । पानी यदि भरता ही गया, नौका में बढ़ता ही गया तो थोड़ी देर में नौका के डूबने की संभावना खड़ी हो जाएगी। ठीक इसी तरह आत्मा कर्म के अभाव में हल्की है । परन्तु राग-द्वेष के छिद्र के माध्यम से बाहरी आकाश प्रदेश से कार्मण वर्गणा आत्मा में प्रवेश कर रही है । नौका में तो एक ही छिद्र था परन्तु आत्मा में कामण वर्गणां के आने के पांच द्वार मुख्य है । इन्द्रियाश्रव प्रादि पांचों प्रवेश द्वारों से कार्मण वर्गणा का आश्रव आत्मा में हो रहा है। सोचिए चेतन प्रात्मा में जड. पुद्गल परमाणुओं को आश्रव से आत्मा पर भार बढ़ता ही जाएगा। पुद्गल पदार्थ में तो वजन रहता ही है । जबकि आत्मा तो वजन रहित अगुरूलघु गुणवाली है। परन्तु कार्मण वर्गणा के भार से आत्मा भारी होकर नौका की तरह डूबती जाएगी। इन्द्रियाश्रव आदि पांच प्रकार के आश्रव द्वार की प्रवृत्ति रही हुई आत्मा कार्म ग वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं को अन्दर खिंचती है । (१) इन्यिाश्रव में इन्द्रियों की प्रवृत्ति के द्वारा आश्रव होता है । इन्द्रियां पांच है। - (१) स्पर्शेन्द्रिय (२) रसनेन्द्रिय (३) घ्राणेन्द्रिय (४) चक्षुइन्द्रिय __ (५) श्रवणेन्द्रिय चमड़ी जीभ नाक प्रांख स्पर्श विषय - ८ रस गन्ध ., वर्ण | us on - कान हवाति पांच इन्द्रियों के → कुल-विषय-२३ संसार में सभी जीव सशरीरी है और शरीर है तो इन्द्रियां अवश्य है जो सभी को समान नहीं मिलती-कम-ज्यादा मिलती है । किसी को १. किसी को २ ३ ४ और ५ । अतः जीवों में एकैन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चारइन्द्रिय एवं पंचेन्द्रि। के भेद है। इन्द्रियों के माध्यम से शरीरस्थ जीव उन उन विषयों को ग्रहण करता है। स्पर्शेन्द्रिय से ८ प्रकार के स्पर्श का ही ग्रहग होगा। उससे आत्मा को स्पर्शानुभव ज्ञान होता है । इसी प्रकार पांचों इन्द्रियां अपने अपने विषय को ग्रहण करती हैं, तथा प्रकार के विषयों में आत्मा राग-द्वेष के आधीन होती है । कुछ विषय प्रिय लगते है । सुगन्ध प्रिय है, दुर्गन्ध अप्रिय है । मीठा-मधुर रस प्रिय है। कटु-कडवा रस अप्रिय लगता है । इस तरह २३ विषयों में कुछ में जीव ने प्रिय की बुद्धि बनाई है और कुछ में अप्रिय की बुद्धि बनाई है। ये प्रिय-अप्रिय भाव राग-द्वेष के कारण १३८ कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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