________________
AALA
को जीव खिंचता है। यह जीव की ही क्रिया है । राग-द्वेषासक्त जीव में ऐसे स्पंदन पैदा होते हैं और वे कार्मण वर्गणां के पुद्गल परमाणुओं को खिचकर आत्मसात करते हैं। उदाह
रणार्थ शान्त सरोवर के स्थिर जल में यदि एक कंकड डाला जाय तो पानी की शांति एवं स्थिरता भंग हो जाती है
और पानी में वमल-उत्पन्न हो जाते हैं। वे गोल वलय के रूप में फैलते-फैलते किनारे तक जाते हैं। वहां की रजकण को स्पर्श करके उसे अपने में खिच लेते हैं। उसी तरह आत्मप्रदेशों में हुए राग-द्वेष जन्य स्पंदन के कारण आत्मा बाहरी प्रदेश की कार्मण वर्गणा खिच लेती है । आकर्षण का यह गुण और क्रिया आत्मा के गुण और क्रिया के रूप में हैं। दूसरा दृष्टांत हम लोह चुम्बक का लें चुम्बक में चुम्बकीय शक्ति पड़ी है। जिसके कारण चुम्बक स्वयं ही बाहरी लोहे के कणों को खिंचता है । बाहरी लोह कण आकर चुम्बक के साथ चिपक जाते हैं। यह चुम्बक की अपनी आकर्षण शक्ति से ही हुआ है । ठीक इसी तरह कतृत्व शक्ति सम्पन्न आत्मा सक्रिय द्रव्य है । कर्म के बीज भूत मूल कारण जो राग-द्वेषादि है उनके कारण आत्मा में हुए स्पन्दनों से प्रात्मा में कार्मण वर्गणाएं खिचकर आती है । आकर्षित होती है। बार-बार की इस क्रिया से असंख्य कार्मण वर्गणाओं का आगमन प्रात्मा में होता है । ये घिरे-घिरे आत्म प्रदेशों पर जम जाती है ।
पाश्रव मार्ग से कार्मण वर्गणा का आगमन
आश्रव
| १ इन्द्रियाश्रव
२ कषायाश्रव
३ अवताश्रव
४ योगाश्रव
५ | क्रियाश्रव २५=४२
आश्रव-आ+श्रवपाश्रव अर्थात् आगमन । आना। आत्मा में बाहर से कार्मण वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं के आने की क्रिया को आश्रव कहते हैं । नौं तत्त्वों में आश्रव को भी एक तत्त्व गिना गया है । आश्रव के मुख्य पांच द्वार कहे गये हैं। जिन माध्यमों से या जिस क्रिया से आत्मा में कार्मण वर्गणा आती है वे आश्रव द्वार
१३६
कर्म की गति न्यारी