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परमाणुओं के संमिश्रित समूह रूप है । इसी लोक में अनन्त जीव भी रहते हैं । वर्गणाएं जीवों के लिए उपयोगी है। शरीर भाषा - मन- आदि बनाने में काम आती है। आत्मा इन्हीं युद्गल परमाणुओं को खिंचकर उनका पिण्ड बनाकर शरीर भाष -मनकर्मादि बनाती है । अत: ये Raw Material के रूप में वर्गणाएं जीवों के शरीरादि निर्माण में उपयोगी है । सभी भिन्न- गुणधर्म वाली है । अतः भिन्न भिन्न कार्य के उपयोग में आती है
(१) प्रौदारिक वर्गणा - मनुष्यों तथा तिर्यं च गति के पशु-पक्षियों के लिए औदारिक शरीर बनाने योग्य ऐसे पुद्गल परमाणुओं के समूह को औदारिक वर्गणा कहते हैं । इसी से हमारा शरीर बनता है अतः औदारिक शरीर कहलाता है ।
(२) वैक्रिय वर्गरा -स्वर्ग के देवताओं का तथा नरक गति के नारकी जीवों का शरीर वैक्रिय शरीर है । अतः उन्हें उनका वैक्रिय शरीर बनाने के लिए बाह्य वातावरण में से जो उस योग्य पुद्गल परमाणुत्रों का समूह ग्रहण करना पड़ता है वह वैकिय पुद्गल परमाणु वर्गणा कहलाती है ।
(३) श्राहारक वर्गणा - १४ पूर्वधारी मुनिराज महाविदेह आदि क्षेत्रों में तीर्थंकर के पास प्रश्न पूछने जाते समय आहारक शरीर की रचना करते हैं । तद् योग्य पुद्गल परमाणुओं को आहारक वर्गणा कहते हैं । इसी को ग्रहण कर वे आहारक शरीर बनाते है |
(४) तैजस वर्गणा - आत्मा के साथ रहे हुए सूक्ष्म तैजस शरीर बनाने योग्य वर्गणा को तैजस वर्गणा कहते हैं ।
(५) श्वासोच्छवास वर्गणा - संसारस्थ सभी जीव श्वासोच्छ्वास लेते ही है | अतः श्वासोच्छ्वास लेने योग्य पुद्गल परमाणुओं को श्वासोच्छवास वर्गणा कहते हैं । जीव यही ग्रहण करता है ।
(६) भाषा वर्गणा - वचन योग वाले जो व्यक्त-अव्यक्त भाषा बोलते हैं उन जीवों को बोलने के लिए भाषा वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं की आवश्यकता पड़ती है । इसे ग्रहण करके ही जीव बोल सकते है । अतः बोलने योग्य ग्रहण करने के लिए भाषा वर्गणा है ।
(७) मन वर्गणा - संज्ञी समनस्क पंचेन्द्रिय सभी जीव विचार करते हैं ।
कर्म की गति न्यारी
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