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________________ काल (५) पुद्गलास्तिकाय द्रव्य - पूरण- गलन स्वभाव वाला यह पुद्गल द्रव्य है । अर्थात् बनने-बिगड़ने के स्वभाव वाले को पुद्गल द्रव्य कहते हैं । यह प्रदेश समूहात्मक होने से सप्रदेशी अस्तिकाय द्रव्य है । स्कंध - देश-प्रदेश और परमाणु इसकी ४ अवस्थाएं है । अणु - परमाणु सिर्फ पुद्गल के ही विभाग में गिने जाते हैं "वर्ण - गध-रसस्पर्शात्मको पुद्गलः” जो वर्ण-गंध-रस - स्पर्शादि गुण । वाला हो उसे पुद्गल कहते हैं । अतः जगत की सभी वर्णादि गुण वाली वस्तुए पौद्गलिक कहलाती है । यह भी चौदह राजलोकव्यापी द्रव्य है । अजीव द्रव्य के १४ भेद पुद्गलास्तिकाय धर्मास्तिकाय | ३ स्कंध १२४ देश (४) काल - यह अजीव द्रव्य है । "वर्तनालक्षणो काल:" वर्तना अर्थात् - परिवर्तन । नया पुराना, आज का - कल का इत्यादि परिवर्तन कालानुसार होता है । यह अप्रदेशी होने से अस्तिकाय नहीं गिना जाता । काल | १ प्रदेश स्कंध श्रधर्मास्तिकाय ३ 1 देश प्रदेश स्कंध श्राकाशास्तिकाय | ३ देश पुद्गलास्तिकाय ४=१४ प्रदेश स्कंध देश प्रदेश परमाणु एक अखण्ड द्रव्य स्कंध कहलाता हैं । उसी स्कंध का अविभाजित अल्प भाग, छोटा भाग देश कहलाता है । तथा उसी स्कंध प्रोर देश का अविभाजित एक छोटा सूक्ष्मांश प्रदेश कहलाता है । तथा वही सूक्ष्मतम अंश प्रदेश जो स्कंध देश से अलग हो जाता है वह परमाणु कहलाता है । धर्मास्तिकाय प्रधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये तीनों सर्वलोक व्यापी अखण्ड स्कंध द्रव्य हैं । अखंख्य प्रदेशी है । कर्म की गति न्यारी
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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