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________________ छ द्रव्य होते हैं । अतः षड्द्रव्य कहते हैं षड्=अर्थात् छ । 'छ' यह संख्यावाची शब्द है । षड् द्रव्य कहने से छ द्रव्य कहने से छ द्रव्य लिए जाते हैं । पंचास्तिकाय से पांच अस्तिकाय वाले ही द्रव्य गिने जाते हैं । काल नहीं लिया जाता। इस तरह षड्द्रव्य कहो या पंचास्तिकाय कहो ये दोनों ही मूलभूत तो जीव-अजीव दो द्रव्यों में ही समाते हैं। जीव-अजीव दो द्रव्यों के ही भेद हैं । दो द्रव्यों का ही विस्तार हैं । अतः मूलभूत द्रव्य तो दो ही गिने जाएंगे । जीव और अजीव । दो द्रव्य (१) जीव (२) प्रजीव षड द्रव्य (१) जीव अजीव २ धर्म ३ अधर्म ४ प्रकाश पंचास्तिकाय ४ प्राकाश ५ काल ५ काल ६ पुद्गल जीवास्तिकाय धम स्तिकाय अधर्मास्तिकाय प्राकाशास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय षड् द्रव्य में चेतन-प्रचेतन द्रव्य चेतन द्रव्य जीव (प्रात्मा) प्रचेतन (प्रजीव) द्रव्य १ २ ३ ४ ५ | धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय प्राकाशास्तिकाय काल पुद्गलास्तिकाय चेतन जीव एक ही चेतन द्रव्य है। इसी को आत्मा कहते हैं। सिर्फ नाम भेद--अर्थात् शब्द भेद है । अर्थ भेद नहीं है । इससे सर्वथा भिन्न अचेतन द्रव्य अजीव या जड़ द्रव्य कहलाता है । इसके पांच भेद है जो ऊपर चार्ट में दिखाए गए है। इस तरह चेतन एक और ये अचेतन पांच मिलाकर कुल षड् द्रव्य-छ द्रव्य हुए। चेतन द्रव्यस्वरूप "गुण-पर्यायवा द्रव्यम्" तत्त्वार्थाधिगम सूत्र का यह सूत्र कहता है कि-- कर्म की गति न्यारी १२१
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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