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तीस कोई द्रव ही नहीं है । (१) जीव (२) अजीब अन्य सभी जो भी द्रव्य है व इन्हीं महान उत्तम है ते हैं। परन्तु
मूलभूत दो ही गिने
जाते है । अन्य इन्हीं के अवान्तर भेद है ।
द्रव्य
प्रजीव द्रव्य (जड़)
धर्मास्तिकाय प्रधर्मास्तिकाय श्राकाशास्तिकाय काल पुद्गलास्तिकाय
मुख्य दो द्रव्यों में जीव द्रव्य को ही चेतन नाम भी दिया गया है । इसी चेतन द्रव्य को आत्मा संज्ञा भी दी जाती है। अतः आत्मा, जीव, चेतन ये सभी समानार्थक पर्यायवाची नाम हैं । इससे भिन्न अजीव द्रव्य है । जिसे जड भी कहा है । यह अजीव द्रव्य जीव से सर्वथा पृथक भिन्न इसलिए है कि जीव के गुणधर्म जीव में नहीं है । जीव-चेतन द्रव्य में ज्ञान दर्शनादि गुण है, सुख-दुःख की संवेदना अनुभव करने का गुण है । परन्तु अजीव द्रव्य में जानने और देखने की क्रिया करने वाले ज्ञान-दर्शन गुण नहीं है इसी तरह अजीव जड द्रव्य में सुख-दुःख का अनुभव करने की संवेदना भी नहीं है। अतः अजीव द्रव्य जीव द्रव्य से सर्वथा भिन्न है । अ + जीव = जो जीव नहीं है वह अजीव । निर्जीव = निर् + जीव = जो जीव रहित है वह निर्जीव । द्रव्यों में भेद करता है । जीव के गुण भिन्न है । उसी तरह अजीव के गुण भी भिन्न है अत: दोनों स्वतन्त्र अस्तित्व रखते हुए स्वतन्त्र द्रव्य है । हम समस्त संसार में यही प्रत्यक्ष देखते हैं । जब भी देखते हैं, जो भी देखते हैं उनमें इन्ही दो को ही देखते हैं। तीसरे द्रव्य का अस्तित्व ही नहीं है ।
जीव द्रव्य (चेतन)
अजीव द्रव्य के पांच भेद है । (१) धर्म द्रव्य, (२) अधर्म द्रव्य, (३) आकाश द्रव्य, (४) काल द्रव्य, और ( ५ ) पुद्गल द्रव्य । धर्मादि नाम से भ्रम न हो अतः इनका न म ध्यान में रखें । (१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) काल, (५) पुद्गलास्तिकाय । अस्तिकाय अर्थात् प्रदेश समूह । अस्तिकाय शब्द जोड़ने से ये द्रव्य अस्तिकायात्मक कहलाते हैं । इसी तरह जीव के साथ भी अस्तिकाय शब्द जोड़ने पर जीवास्तिकाय कहलाता है । प्रदेश समूहात्मक अस्तित्व रखने वाले
कुल पांच हैं । अतः इन्हें पंचास्तिकाय कहते हैं । काल एक ही द्रव्य प्रदेश समूहात्मक नहीं हैं । अतः काल को अस्तिकाय नहीं कहते हैं अस्तिकाय वाले सभी ब्रव्य इक्ट्ठे किये जाय तो ये पांच होते हैं । अतः पंचास्तिकाय कहते हैं । यदि काल को कहते हैं । यदि काल को साथ में जोड़ें और ये पांचों द्रव्य तथा काल मिलाकर कुल
कर्म की गति न्यारी
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