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________________ अपना अन्त या संसार का अन्त ? साधक अपने बारे में सोचे यही लाभप्रद है। जबकि ऐसा संसार का स्वरूप है। समष्टि से तो यह संसार अनादि-अनंत है ही। परन्तु किसी की दृष्टि से इसका अन्त भी है। भगवान महावीर का संसार अनादि जरूर था लेकिन अन्त हो गया । एक व्यक्ति विशेष का संसार सान्त भी है। अतः संसार का अन्त लाना है कि हमको हमारे अपने संसार का अंत लाना है ? समस्त संसार का अंत तो संभव भी नहीं है। आने वाला भी नहीं है। परंतु अपने एक के व्यक्तिगत संसार का अन्त लाना चाहें तो जरूर ला सकते हैं । भूतकाल में भगवान महावीर की आत्मा ने अपने संसार का अन्त लाया। वैसे ही चौबिसें तीर्थंकरों ने, सभी गणधर भगवंतो ने, इसी तरह कई आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-साध्वीजी महाराजों ने भी अपने संसार का अन्त किया और मोक्ष में बिराजमान हो गए। परन्तु हमारे जैसों का संसार तो आज भी चल ही रहा है और मान लो कि हम जब संसार छोड़कर मोक्ष में चले जाएंगे तब कीडेमकोड़े-कृमि-किट-पतंग आदि अनन्त जीव इस संसार में हैं उनका संसार चलता ही रहेगा। संसार का कभी अन्त नहीं होता। काले अणाइ निहणे जोणि गहणंमि भीसणे इत्थ । ... भमिया भमिहंति चिरं जीवा जिणवयणमलहन्ता ।। पू. शांतीसूरी महाराज जीवविचार प्रकरण में फरमाते हैं कि - अनादि काल से अनेक योनियों को ग्रहण करता हआ यह जीव इस भीषण संसार के अन्दर भटकता रा है और जिनेश्वर भगवान के वचन (आज्ञा) को न प्राप्त करने वाला भविष्य में भी चिरकाल तक इस संसार में भटकता ही रहेगा। हम संसार को छोडे या संसार हमें छोडे ? - एक युवक रास्ते पर इलेक्ट्रिक के खम्भे से लगा हुआ जोर से चिल्ला रहा था-बचाओ बचाओ...छूड़ाओ छुड़ाओ । सज्जन को यह सुनकर दया आई और वह छुड़ाने आया। साथ में किसी दूसरे को भी मदद में लेता आया। दोनों ने दो हाथ पकड़ कर खिंचना शुरू किया। जैसे जैसे दोनों जोर लगाकर हाथ खिंचते जा रहे थे कि युवक हाथ मजबूत पकड़ रहा था। उसकी मजबूत पक्कड़ से वे दोनों छूड़ा नहीं सके और चल दिये । यह दृश्य देखकर एक तीसरा सज्जन आया। उसने सोचा कि इस युवक ने खम्भे को पकड़ रखा है कि इस खम्भे ने युवक को पकड़ा है ? क्या बात है ? अन्दर से उत्तर मिला खम्भा तो जड़ है। जड़ कहां चेतन को पकड़ रखता है ? अतः इस युवक ने ही खम्भे को पकड़ रखा है, और फिर भी यही चिल्ला रहा है बचाओ बचाओ...छुड़ाओ छुड़ाओ...। क्या बात है ? गंगा उल्टी बह रही है। यदि कर्म की गति नयारी (४०)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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