________________
अर्थात् सम्यग् सही सच्चा दर्शन, ज्ञान और चारित्रादि मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग है, सही धर्म है। अतः चार गति के संसार चक्र से छूटने के लिए अब जीव मनुष्य गति में आकर इन दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि धर्म (मार्ग) की सच्ची उपासना करे तो सदा के लिए चारों गति का अन्त करके ऊपर उठकर सीधा मोक्ष में जाता है। यह सिद्धशिला कही जाती है। चौदह राजलोक के अग्र भाग पर ४५ लाख योजन विस्तार वाली लम्बी सिद्ध शिला है। जहां अनंत सिद्ध भगवंतो का वास है। यही मोक्ष कहलाता है। यहां गया हुआ जीव पुनः संसार में नहीं लौटता । जीव मोक्ष में गया, मुक्त हआ, सिद्ध हआ अर्थात् सर्व कर्म से सदा के लिए मुक्त हआ। सदा के लिए जन्म-मरण के संसार चक्र से छुटकारा पाया । चार गति के परिभ्रमण से सदा के लिए छूटकारा पाया । शरीर के संयोग से सदा के लिए छूटकारा पाया । यह मोक्ष ऐसा है । अतः इसी क्रम से चावल का स्वस्तिक (साथीया) अक्षत पूजा में बनाते हैं। द्रव्य सहायक साधन है । भाव प्रेरक प्रबल कारण है । भावना-धारणा बनती है। . चारों गति में जीवों का जीवन :
देव गति
जीव
तिर्यंच गति
३५
कर्म की गति नयारी