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________________ जन्म-मरण क्या है ? यह पूछने का प्रश्न नहीं हैं। सभी अच्छी तरह स्पष्ट जानते हैं। परंतु शास्त्रीय भाषा में इसका उत्तर इस तरह दिया जाता है कि-जीव जिस गति में स्वोत्पत्ति स्थान में गया, वहां उत्पन्न हआ । आहारादि ग्रहण करके देह निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया। शरीर एवं इन्द्रियां बनाई। श्वासोच्छवास का कार्य प्रारम्भ किया। भाषा-मनादि की छ पर्याप्तियां पूर्ण की इस तरह छ पर्याप्तियां पूर्णकर निश्चित काल अवधि तक वहां विकास पूर्ण कर योग्य समय में जन्म लिया। आत्मा का देह में रहने का काल पूरा होने के बाद देह को छोड़कर चले जाना मृत्यु है। अतः आत्मा का देह संयोग-जन्म और देह वियोग मृत्यु है। जन्म से लेकर मृत्यु तक लम्बी एक रस्सी रखें तो उस रस्सी का पहला किनारा जन्म का है और अंतिम किनारा मृत्यु का है। अतः संसार चक्र में एक दिन जन्म का और एक दिन मृत्यु का है। जन्म से मृत्यु के बीच के काल को जीवन कहते हैं। किस जीव की काल अवधि कितनी है? यह उसके बांधे हुए आयुष्य कर्म पर आधारित है। यह जीवनडोरी है। अत्यन्त अल्प आयुष्य (जीवन काल) है। मृत्यु कब आएगी यह निश्चित नहीं है। 'नित्यं सन्निहितो मृत्यु कर्तव्यो धर्म संचयः' । मौत सिर पर मंडरा रही है, मृत्यु सदा ही पास खड़ी है यह समझकर धर्म कार्य, आत्म कल्याण की साधना जो करनी है वह कर लेनी चाहिए ऐसा महापुरुषों का कथन है। जीवों की खान-खदान निगोद : जन्म-मरण का मुख्य केन्द्र आत्मा है। आत्मा के बिना जन्म-मरण का अस्तित्व भी नहीं रहता। जबकि जन्म-मरण अनादि-अनंत काल से चल रहे हैं तो आत्मा का अस्तित्व भी अनादि-अनंतकाल से हैं यह सिध्द हो गया। भूतकाल की अपेक्षा से जन्म-मरण का अनादित्व सिध्द हुआ है और भूतकाल में भी भव संख्या अनंत हई है। लेकिन भविष्यकाल की अपेक्षा से विचारें तब मोक्ष में जाने के बाद जन्म-मरण की अनादि परम्परा का अन्त भी आ जाएगा। परंतु आत्मस्वरूप के अस्तित्व में कोई न्यूनता नहीं आएगी। चाहे आत्मा संसार में रहे या मोक्ष में जाय। आत्मा स्वस्वरूप से स्वद्रव्य से नित्य शाश्वत,अजर-अमर, अनादि-अनित्य स्वरूप में ही रहेगी। आत्मा की उत्पत्ति नहीं है अतः अनादित्व है और अन्त (नाश) नहीं है अतः अनंतत्व सिध्द होता है। ___ जैसे सोना-चांदी-हीरा आदि कहां से आए? कहां थे? कैसे थे? इत्यादि सोचते समय उत्तर मिलता है कि सोना खान से निकला, चांदी, हीरा आदि भी खान से निकला से निकला हैं। खान हीरे का मूल उद्गम स्थान है। वैसे ही सोना चांदी भी खान से निकले हैं। उसी तरह जीव कहां से आया? कहां से निकला? ये प्रश्न खड़े होते हैं। इसका उत्तर देते हुए - “जीव निगोद के गोले में से निकला है ऐसा सर्वज्ञ कर्म की गति नयारी (१८)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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