SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन्म लेना है इस गन्तव्य स्थान में पहुंच गई। जाने की इस क्रिया में आत्मा को कितना समय लगता होगा? १-२ मिनीट या १-२ सेकण्ड ? जी नहीं । द्रुतगामी पलक में जानेवाली आत्मा जो कि अदृश्य अरूपी है हम उसके बारे में क्या बतावें ? यह तो सर्वज्ञ केवलज्ञानी भगवान का विषय है। अनन्तज्ञानी महापुरुष फरमाते हैं कि आत्मा को अपने दूसरे जन्मस्थान तक पहँचने में सिर्फ २-३-४ समय लगते हैं। समय यह काल की अंमित इकाई है। परमाणु जैसे पुद्गल पदार्थ का सूक्ष्मतम अछेद्य, अभेद्य-अदाह्य स्वरूप है। 'समय'जो कालाणु की तरह अन्तिम इकाई है - वह समय कहलाता है। सर्वज्ञ भगवन्तों ने इनकी गणना करते हए कहा है कि आंख की पलक में अर्थात् आंख एक बार टिमटिमाते हैं इतने में असंख्य समय बीत जाते हैं। एक बार की आंख की पलक में जो असंख्य समय बीत जाते हैं इसमें से २, ३ या ४ समय में आत्मा १ शरीर को छोड़कर ४ गति में से किसी १ गति में निश्चित जन्मयोनि में पहुँचकर जन्म धारण कर लेती है । अथात् माता की कुक्षी में जन्म स्थान में स्थित होकर देहरचना आदि का कार्य प्रारम्भ कर देती है। सिर्फ इतने से समय मात्र काल में। समय की सूक्ष्मता कल्पना किजीए 'उदाहरणार्थ १००० पेज की पुस्तक को मशीन से पीन लगाते हैं। कितना समय लगता है ? मशीन से यह कार्य एक झटके में हो जाता है। उत्तर में १ सेकंड़ समय लगा। ठीक है। अब बताइए कि १ पेज से दसरे पेज में जाने के लिए उसी पिन को कितना समय लगा ?' १ सेकण्ड में १000 पेज में पिन गई तो १ पेज से दूसरे पेज में जाने में १ सेकण्ड का हजारवां भाग काल लगा। सेकण्ड़ का हजारवां भाग समय कितना होता है ? इसके लिए हमारे पास कोई एक शब्द नहीं है और न ही 'मापक-यन्त्र' । अतः सेकंड़ का हजारवां भाग उत्तर देना पडा। और मानों कि हंजार की जगह पर एक लाख की पेज संख्या होती तो क्या उत्तर देते? 'सेकण्ड का लाखवा भाग' कहते। इस तरह कहां तक आगे बढ़ेंगे? अन्त में काल की कोई निश्चित इकाई निकालनी पड़ेगी। वह सर्वज्ञ भगवतों ने बताई है। 'समय' को काल की अंतिम इकाई की संज्ञा दी है। जो एक बार आंख की एक पलक में असंख्य समय बीत जाते हैं इन असंख्य समयों में से सिर्फ २-३-४ समय जीव को अपने उपार्जित कर्मानुसार स्थान तक पहँचने में लगते हैं। अतः कितना सूक्ष्मतम गणित है सर्वज्ञ महापुरुषों का? जहां हमारी बुध्दि के परे की बात है, वहाँ अनंत ज्ञानी का ही प्रमाण असंदिग्ध रहता है। इतना अल्पकाल जीव को जाने में लगता है। इस तरह विचार करने पर यह प्रतीत होगा कि कितने जन्म-मरण जीव ने धारण कर लिए होंगे? जन्म-मरण क्या है ? -कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy